Saturday 16 September 2017

काहें रचीलाँ हम भोजपुरी में / परिचय दास

कहल-सुनल -3


वइसे त , भाषा अभिव्यक्ति क एगो  एक साधन ह बाकिर  ओकर  भूमिका इतिहास आ  संस्कृति के धारन कइलहू  क   ह , एसे  अपन मातृभाषा में साहित्य रचला  के  प्रयोजने  अनन्य ह। चूंकि एम्मे  हमनी के  स्मृति आ  बिम्ब होलें एह नाते  एकर   सौन्दर्य एगो   आत्मीयता  आ  निकटता के  सर्जना करेला । साहित्य-कला हमनी  के अंतः विवेक आ  संवेदन क  आवश्यक फलश्रुति ह । हमनी के  अनुभव कइल जाला  कि समाज क  पतनोन्मुख हिस्सा हमनी के  ' अंतसआ  इयतापर गैर-जरूरी दबाव डालेला  , बाकिर ध्यातव्य हवे  कि साहित्य क अंतःकरन  समाज क उपनिवेश नइखे । बजार के नकारात्मक प्रभाव आ  राजनीतिक दर्शनन  क छाया साहित्य के  आत्म  के  अनुकूलित कइल चाहत हवें , बाकिर साहित्य समय आ दर्शन के अतिक्रांत कइला के  महासंवेदना ह।

जब  हम  भोजपुरी में साहित्य रचीलाँ  त  ध्वनियन , शब्दन  आ  वाक्यांशन  में शब्दक्रमन  के  विशिष्टता आ  उनके  क्रमबद्ध रूप दिहला के  विशिष्ट भंगिमा से पता चलेला   कि भाषा हमरा खातिर केतना  महत्त्वपूर्ण ह। भाव, बिम्ब आ  लय संश्लेषन  के  वाचिक आ  लिखित माध्यम से सम्प्रेषित कइला  में भाषा क हमरे खातिर  अद्वितीयता ह । सम्प्रेषनीयता से संस्कृति क निर्माण होला । हमरा  शिल्प के सर्जन में किसान-शक्ति क रचनात्मकता ह , सथहीं   , परम्परा आ  समकाल के  नूतन सम्भावना से देखला  क प्रत्ययो । किसान के  अपन मातृभाषा बोलला  आ  एगो  बृहत्तर राष्ट्रीय या महाद्वीपीय भूगोल से जुरल  रहला  में कौनों अंतर  ना  देखाई  देला । हमरे शिल्प के उपकरण आज के चराचर के  संदर्भित करेलन । प्राकृत आ  अपभ्रंश क ऐतिहासिक अवस्थिति के  देखत  आज  के  भाषिक-साहित्यिक रूपाकृति में भाषा के विलोपन के  प्रक्रिया के  समझे के होखी । ' जरिन   की ओर लवटला  '   के  बाति  कहीं अलगा  लागू होत होखी । हम  अपन लेखन के  जर  से निकलले    मानीलां । आखिर हमार  साहित्य जरमूल से संपृक्त जन खातिर त ह , उन्हनीये  क  भंगिमो  ओम्मे होखी ।

सबसे पाहिले त  ई कि हम  केकरा खातिर लिखीलां  ?   जेकरा   खातिर हम  लिखीलां   ओकरा खातिर भाषा क चुनाव का  अर्थ रखेला  ? ई  प्रश्न अत्यंत मूल्यवान ह  कि अंग्रेजी , चाहे  अन्य प्रभुत्वकारी भाषा अइसन  का ना अभिव्यक्त क  पावेलीं  जवन  भोजपुरी करेले । वास्तव में अंग्रेजी  क  कथ्य ऊ  होइए ना सकेला जवन भोजपुरी के होखी  ।

भोजपुरी आ अंग्रेजी  क  सांवेदनिक व सामाजिक पृष्ठभूमि अलग-अलग ह । भाषा में वास्तविक जनप्रेषण   यथास्थितिवाद के  चुनौती ह । भोजपुरी भाषा में बोले  वाले इहाँ  नगर-महानगर, हर कहीं हवें , हर तबका के  ।  यानी कि ई  जीवंत भाषा ह आ धरती से जुरल ।  ई  महज शासन आ  किताब के  भाषा नइखे । हम उहे गाइलां  , जवन  जनता गावेले आ  हमार  मन गावेला । हमार  रचना क  विषय-वस्तु आ  बिम्ब आत्म व जन संघर्ष से लिहल गइल हवें । आत्म व जन संघर्ष के बीच एगो  गहिर  सम्बंध ह । सांस्थानिक  आ  जन स्तर पर सांस्कृतिक विनिमय अत्यंत आवश्यक ह ।

कई बेर देखल गइल  ह कि संस्कृति के प्रतिमानन  के  रचना में  पश्चिमी हस्तक्षेप हद से जियादा बढ़ि  गइल हवे । पश्चिम क  मूल्य हमनी के  मूल्य ना हो सकेलन  बाकिर  सौन्दर्य के विभिन्न तंतुअन  द्वारा हमनी के उप्पर  उन्हनी के  आरोपित कइला  के  सूक्ष्म प्रक्रिया जारी ह । हमनी के एह  स्थिती में पहुंचे लागल हईं जा  कि साहित्य, जीवन आ  सामाजिक संघर्षन  के बारे में एगो  खास दृष्टिकोण-जइसन  बनल जात हवे  जवन , हमनी के जरन से ना आवेला । हमनी के  साहित्य के व्याख्या पश्चिमी धुरी पर ठाढ़ होके कइल जाला आ  दुनिया के ओइसने देखवला में लगि जाइल जाला  ।  ई कवनहूँ  तरह उचित नइखे । पश्चिमी सिद्धांत के जानल एगो अलग बाति बा आ साइत ऊ जरूरियो ह ।

होला का , कि जवन  शिक्षा आ  संस्कृति के  पश्चिमी आधार आ अंग्रेजी  के बल पर हमनी के  समझला के कोशिश कइल जाला  , ओम्में अपन जरि  पूरी तरह आत्मसात ना  होले एहसे  जब कब्बों  बड़  सांस्कृतिक आ  सामाजिक परिवर्तन के  आवश्यकता होले  त , ऊ दृष्टिकोण काम क  ना  होला । खाली सिद्धांत के बात अलग बा ।  किसान के अँगोछा  क  संस्कृति अंग्रेजी  में ना लियावल जा सकल जाला , अइसन हमार मानल हवे । राष्ट्र द्वारा बोलल  जाये  वाली भाषन  में उपलब्ध संस्कृति आ  इतिहास क  समृद्ध राष्ट्रीय परम्परा क  प्रयोग क  के  शक्ति पावल  जा सकल जाला । हमनी के  वास्तविक साहित्य तब्बे  विकसित हो सकेला , जब  भारत के किसान समुदाय क  समृद्धि  संस्कृति, भाषा आ इतिहास के  तह  में अपन जरिन  खातिर  प्रवेश करे। इहां किसान समुदाये अइसन हवे , जवन अधिक  अधिक संख्या में ह आ ओकर जाहिर रचनात्मक-सांस्कृतिक महत्त्व हवे । दुर्भाग्य से आज ओकर  आवाज़  बहुते  कम सुनल जा रहल हवे  आ  ऊ आत्महत्या कइला  के  विवश हवे । रचनाकर्म करत समय हमके  अतीत क  समस्त ध्वनि, चीख, प्रेम, संघर्ष के स्वर सुनाई देला आ ई  स्वर  अइसन भाषा में नहीं हो सकेलन  जेकर  वास्तविक जरि भारत के  धरती में न होखे  या  जनसंघर्ष से जुरल ना होखे ।

प्रत्येक मनई  के  संस्कृति के सकारात्मक तत्वन  के  मेराइये के    मानवीय मूल्यन आ   परम्परा क अइसन अधार तइयार  हो सकेला जवन  वैश्विक प्रभाव छोड़ सके । आर्थिक  आ राजनैतिक मुक्ति, वास्तविक मुक्ति क  बुनियादी शर्त हवे  त  वोह  आर्थिक आ  राजनैतिक मुक्ति  क  यात्रा नपला के   पैमाना हमनी के संस्कृति, मूल्य  आ  दृष्टिकोण हवें  ।

 साहित्य क  एगो  गुन  आत्मसंवर्धनो  ह, जेम्मे  आलोचनात्मक मानसिकतो  सम्मलित हवे । हम  भोजपुरी आ  हिन्दी के माध्यम से समग्र परिवेश के  आलोचनात्मक ढंग से आकलन आ  मूल्यांकन क पाइलां । सथहीं  एह प्रक्रिया में उपलब्ध उपकरनन  के  सहायता से दूसर संस्कृतियन आ  पुरहर दुनिया क  आकलन आ मूल्यांकनो । हमनी के  एगो  स्वतंत्र देश में रहल जाला ।  कवनहूँ   स्वतंत्र देश के  अपन संस्कृति के अध्ययन से जुरल  अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय क  काम दुसरा  देशन  के बदले स्वयं करे के चाहीं । राष्ट्रीय संस्कृति के  पश्चिमी-अभिमुखी निर्णयन  के  गुलाम बनावल   देश के लोगन  के प्रति विश्वासघात ह । ओम्मे हमनी के  संघर्ष क  सौन्दर्यबोध ना होखी  आ  मनुष्य क  रचनात्मकता के  शक्ति क  निरादरो । इतिहास के हमनी के  अनुभवन के  अभिव्यक्ति हमनी के  अपन  साहित्य में इहाँ  के  माटी के  सुगंधे   से  सम्भव ह ।


हमरा  मन के  रचना में विविध भाषा-साहित्य  क  संघनन ह । ओम्मे  अपन धरती ह । भाषा क  सहजता हमरा में  सम्पोषित होले ना कि  कट्टरता ।  कट्टरता  हिंसाचारी आ लोकविरुद्ध होले । हमार  साहित्य संवादधर्मी आ  प्रीतिकर्मी ह । मातृभाषा में संस्कृति के  सर्जनात्मकता क  सहजता सम्भव हवे ।

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लेखक- परिचय दास 

लेखक का ईमेल - parichaydass@rediffmail.com

Sunday 10 September 2017

भोजपुरी के आत्म रचाव / परिचय दास

कहल-सुनल-2

 हम बरिस बरिस से भोजपुरी में लिख रहल बानीं. एगो सर्जनात्मक कवि
के रुप में एह भाषा के आत्मीयता के अनुभूति हमरा बा. हम जानीलें कि रचनाशीलता के समग्र आयाम अपना स्मृति बिंब के मातृभाषा में जेतना सम्भव बा, ओतना अन्य में ना. भोजपुरी हमरा अस्तित्व के संपूर्णता में संभव बनावेले. अंग्रेजी के दबाव के बीच एशियाई मन अपना अभिव्यक्ति के सहज मार्ग के सृजन में सन्नद्ध हऽ. वास्तव में भाषा के चुनाव अपना खातिर एगो दुनिया के चुनाव करे जइसन हऽ. ई योंही ना कि किसानन के आत्महत्या पर चार साल पहिलहीं हम अपना कविता के माध्यम से सब लोगन ले पहिले आपन मंतव्य प्रकट कइलीं. हमार कन्सर्न ओह पाठक या श्रोता से हऽ जहाँ हमार जड़ हवे. शायद संवेदना के तंत्री व सोझ संबंध भाषा के स्रोतस्विनी से हऽ. जब गरीब बदहाली से लड़ रहल होखें आ हमनी के सरजनात्मक विवेक व सक्रियता से विमुख हो जाईल जाँ तऽ हमनी के समूचे अध्ययन, विज्ञान व साहित्य के कवनो अर्थवत्ता नइखे. अपना अपना माध्यम से हम संवेदन के जागृत कर सकीलाँ. मनुष्यता के पक्ष में एतना कइल गइल अति आवश्यक बा. हमार शुरू से मत रहल हऽ कि साहित्य कें अंतःकरण समाज के उपनिवेश नइखे, ओकर संपूरक हऽ. साहित्य वोह तरह के प्रतिक्रिया ना देला, जइसन अन्य अनुशासन देलें. एही से साहित्य समय के अतिक्रांत कइला के क्षमता रखेला.


भोजपुरी के माध्यम से दोसरन के संदर्भ में हम स्वयं के तथा विश्व के संदर्भ में दुसरन के देवता के शक्ति विकसित करीलाँ. आज साम्राज्यवाद अपना पुरान रुप में ना, बल्कि बाजार के पतनशील शक्तियन के रूप में हऽ. यदि हम व्यक्ति व सामूहिक आकाई के रूप में देखीं तऽ समझे के पड़ी कि साम्राज्यवाद कौना भाषायी शकलमें आवेला आ हमार आत्मसंघर्ष कवन आयाम ग्रहण करेला. अपना आर्थिक व राजनैतिक जीवन की प्रक्रिया में कौनो समुदाय एक जीवन शैली विकसित करेला, जवन उप्पर से देखला वोह समुदाय के विलक्षणता से युक्त होला. समुदाय के लोग आपन भाषं, आपन गीत, नृत्य, साहित्य, धर्म, थियेटर, कला, स्थापत्य आ एक अइसन शिक्षा प्रणाली विकसित करेलें, जवन एगो नया सास्कृतिक जीवन के जनम देला. संस्कृति सौन्दर्यपरक मूल्यन के अवधारणा के वाहक होले.

भोजपुरिहा मनइन द्वारा खुद के संबंध के विश्व के साथे देखल जाइल कवनों यांत्रिक प्रक्रिया नइखे, जवन आर्थिक ढाँचा के माध्यम से राजनैतिक तथा अन्य संस्था के उदय के साथे व क्रमिक रूप से संस्कृति, मूल्य, चेतना आ अस्मिता के उदय के साथ सुव्यवस्थित चरण आ छलाँग में घटित होखे. संघर्षशील वर्ग आ राष्ट्र खातिर शिक्षा मुक्ति के उपकरणो हऽ. ई परस्पर विरोधी संस्कृतियन के बीच अपना विवेकशील विश्वदृष्टि के वाहकऽ. पश्चिमी किसिम के सभ्यता, स्थिरता आ प्रगति के बिल्कुल वोही रुप में स्वीकार कइला के चेष्टा अंततः भोजपुरी मानस के आपन उपनिवेश बना लेई. अपना जड़ के महत्ता बचा के राखे के चाहीं.
ई हम बिल्कुल ना कहि सकीलाँ कि हमार भोजपुरी कविता खाली कवियन खातिर बा. ई सही हऽ कि हम एगो कवि के रूप में जी लाँ, बाकिर सिरिफ कवि के रुपे में ना. हमरा मन में एक संवेदनशील मनुष्य के समता मूलक समाज के कल्पना हऽ, किन्तु हमार साहित्य नारा नइखे. सर्जनशीलता कऽ हेतु अंततः संवेदना व चेतना हऽ. निवासी व प्रवासी के रुप में भोजपुरी लोग समूचा विश्ववितान रचले बाड़न. मारिशस में अपना खून पसीना से गंगा व ओकर संस्कृति रचले बाड़न. सूरीनाम, नेपाल, गुयाना, त्रिनिडाड, फिजी, दक्षिणी अफ्रीका इत्यादि देशन में अपना श्रम से पुष्प खिलवले बाड़न.

हम सभे जानी लाँ कि उधार लीहल भाषा आ दुसरन के अंधानुकरण से अपना साहित्य आ संस्कृति रचल विकसित कइल संभव नइखे. हम भाषाइ रुप से कब्बो कट्टर नइखीं जा. काहे  से कि हमनी के मानल ई हऽ कि भाषा आ साहित्य के बीच सांवादिकता बनल रहे के चाहीं. अपन वाचिक आ लिखित परंपरा के गर्भ से रत्न उत्खनन खातिर अब तऽ चेष्टाशील होइये जाये के चाहीं. संस्कृति के विविध क्षेत्रन में पुनर्जागरन के अगाध सृष्टि होखे के चाहीं. भाषा के भण्डार विज्ञान, दर्शन, तकनीक व मनुष्य के अन्य प्रयासन खातिर खोलल आवश्यक हऽ. शब्द कौतुक एक कला हऽ, किन्तु संस्कृति के प्रवाह शब्दन में मात्र अमूर्त सार्वभौमिकता से संभव नइखे. यदि हमनी के वास्तव में चाहऽतानीं जा कि हमनि के शिशू व हमनी के स्वयं के अभिव्यक्ति के लय प्रकट होखे तथा प्रकृति के साथ हमनी के रचाव के संवर्द्धन होखे तऽ मातृभाषा के सर्जना पर बल आवश्यक हऽ. ई कार्य अंधविचार से परिचालित ना होखे के चाहीं. अपना भाषा आ परिवेश के बीच स्थापित सामंजस्य के प्रस्थान बिंदु मान के दूसरो भाषा सीखल जा सकल जालीं. अपन भाषा, वय्क्तित्व आ अपना परिवेश के बारे में कौनो ग्रन्थि पलले बिना अन्य साहित्य व संस्कृति के मानवीय, लोकपरक व सकारात्मक तत्व के आनंनद उठावल जा सकल जाला. अपना व विश्व के दुसरा साहित्य भाषा से हमनी के रिश्ता रचनात्मक होखे न कि दबाव भरल या उपनिवेश परक. अंततः हमनी के अपन स्मृति व बिंब के सार्थक आधार अपने भाषा में संभव हऽ. समकालीन चिंतन व भंगिमा के अपना माध्यम से जेतना प्रकट कइल जा सकल जाला, अन्य से ना. एही से ई समकाल के भी उचरला के विशिष्ट पथ हऽ. वईसहूँ, परम्परा आ समकालीनता के बीच स्वस्थ संबंध होखे के चाहीं, जवन मूल से ही संभव हऽ.

भोजपुरी  न केवल शब्दिक बिंब के रूप में आत्म व जनसंघर्ष के रचनात्मक चेतना के स्वीकृति हऽ, अपितु संस्कृति   के आत्म पहचान भी. एसे गर्भ ले चहुँपि के रत्न के उत्खनन के संभावना अउरी प्रबल होखी.

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- परिचय दास
9968269237  

Saturday 9 September 2017

भोजपुरी : स्मृति आ समकाल क मैजिक / लेखक - परिचय दास

 कहल-सुनल -1

भोजपुरी व्यवहार में बरते जाए वाली, बोले जाए वाली आ लिखित भासा दूनों ह । एगो बड़हन भू-भाग में ऊ बोलल जाले । यद्यपि आज ऊ देवनागरी में लिखल जाले बाकिर कब्बों एकरे खातिर कैथीलिपियो उपयोग में लीहल जात रहे । एकर भासाई आ क्रियापद क अन्विति में गहिर परंपरा के सन्निवेस हवे । ई खाली लोकके श्रेनी में डाल के छुट्टी पा लिहल जाए वाली भासा नइखे । भोजपुरी मात्र भोजपुरी फिल्मन आ कुछ सांगीतिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमन ले सीमित नइखे । भोजपुरी साहित्य के अभिकेन्द्रक ले सामान्य आदमी के कई बेर ना पहुंच ना हो पावेला , यद्यपि ओकर आधार सामान्य मनई हवे... ।

भोजपुरी साहित्य के असली रूप अब जनसमाज के समने कायदे से 'आधुनिक आ समकालीन रूप ' में आवे के चाहीं । वइसे अबहूँ कुछ हद तक आ रहल बा । एके दूसर भासा में कहल जाय त अब हमनी के अइसन पाठक- समाज विकसित करे के ह जवन भोजपुरी साहित्य प्राथमिकता से पढ़े। हमनी के वोह तरह के समाज बनावे के चाहीं , जेम्मे भोजपुरी में लिखे वाला आलोचक, निबंधकार, कवि आ पत्रकार हमनी खातिर क्रेज के विसय होखे । हमनी के समाज के वैचारिक नेतृत्व करे वाले खातिर स्पृहा होखे। जे लोग सामाजिक चाहे राजनैतिक छेत्र में सक्रिय ह , उनके कुछ इतर कारनन आ सक्रियता के कारन लोग जानेलें । ई एगो अलगे समाजसास्त्र ह जवन लोग हमनी के सांस्कृतिक (साहित्य, कला, संगीत, थियेटर, नृत्य इत्यादि) नेतृत्व करेलन , विशेष तौर पर साहित्यिक नेतृत्व, उनके प्रति हमनी के तात्कालिक उदासीनता बहुत विकट रूप में लउकेले । वृहत्तर अर्थ में ई एक तरह के सांस्कृतिक विपथन ह । हमनी के कइसन समाज बना रहल हईं जा जेम्में कंपनियन से पैकेज, सोफा, एलईडी, कार, बंगला हमनी के समकालीनता में शामिल ह बाकिर साहित्य नइखे । का हमनी के अइसन भोजपुरी समाज ना बना सकीले जहां शहरी, अर्धसहरी या ग्रामीण मेहरारू -मरद बजार जांय , कवनों समान खरीदें त उनके सोच में एगो भोजपुरी के किताब या पत्रिको खरीदल सामिल होखे ?

अबहिन जवना कवि- व्यक्तित्व के बारे में ठीक से धियान भोजपुरी समाज के ना गइल ह , ऊ हवें - बिसराम । ऊ जब बिरहा सुनावत रहलें त फुटकर प्रसंग में एगो भिन्न प्रकृति के कविता बोलत रहे । भिखारी ठाकुर के समानांतर या उनके कालांतर के साहित्य पर अबहिन हमनी के केन्द्रीय दृष्टि ठीक से गइल ना लगत हवे , अइसन कुछ लोग के मत बा । भिखारी ठाकुर के साथे -साथे अपने अवरहूँ समकालीन साहित्यधर्मी आ साहित्य सिलपियन के पारदरसी अन्वेसन आवस्यक ह । कवनहूँ संस्कृतिशील समाज के उद्बुद्ध होखला के लच्छन इहे ह कि ओकर संवेदनसीलता के केतना लय ह । साहित्य वोही संवेदनमयता के विलच्छन लय ह । समाज खाली समाज के फोटोकॉपी नइखे । कॉपी कहि के हम ओकरा के अवमूल्यित ना करब । ओम्में अंतकरन के विसादो -संवादो हवें ।

भोजपुरी में लोक ह त अत्याधुनिकतो हवे । लोकसंस्कृति से प्रेरित होखल या परंपरा से दम प्राप्त कइल एगो स्वस्थ प्रकृति क निदरसन ह बाकिर ओसे आगे बढ़िके अपन समय व समाज पर दीठ गइल हमनी के अग्रगामी बनाई । सामाजिक चेतना के बगैर हमनी कई गो फूहर संवाद या स्तरहीन हास्य अथवा देह के अनर्थक प्रस्तुति से मुकाबला ना क पावल जाई । ई बात याद रखे के चाहीं कि राजनीति से अधिक दूर ले साहित्य जाला , यद्यपि दूनों में द्वंद्व देखल आजु के टाइम में नासमझी होखी । बस कहे के ई बा कि साहित्य, समाज, कला के राजनीति के उपनिवेस मानल गलत हवे । कई बेर राजनीति तात्कालिकता से पार ना पावे त साहित्य सदी- सताब्दी- अनंतकाल खातिर अंतरदीठ देला ।

एही से भोजपुरी साहित्य आ सिल्प पर ठीक से धियान जाए खातिर एगो वातावरन के निर्मिति आवश्यक हवे । अइसन माहौल बने कि जनसमाज आलोड़ित हो उठे कि बगैर अपन लिखित साहित्य के समझले , पढ़ले या अवगाहित कइले हमनी के एगो निस्चित तरह के बिंबधर्मिता, गहराई आ थाती से वंचित रहि जाइल जाई । भोजपुरियो समाज कृषि समाज से औद्योगिक व जटिल समाज की ओर बढ़ चुकल बा । हमनी के अपन सांस्कृतिक संरच्छन खातिर अब वोही तरह के उपकरन चुने के होखी । भोजपुरी समाज के पास अथाह, अगाध आ स्मृति-परकता ह । हर संस्कृति में स्मृति समय क एगो मापदंड हवे । स्मृति ना त सच पूछीं त समय ना । भोजपुरी साहित्य आत्मा के जीवित प्रतिरूप ह ।

सर्जनात्मक भोजपुरी साहित्य धरती आ आकास के दुर्लभ मेल हवे , जेम्में परिचित बंधुत्व के संस्पर्स हवे , गोधूलि के रंग हवे । ओम्में मूल के तलाश हवे आ केन्द्र -बिंदु के खोज। ओम्में जटिलता, वेदना, आधुनिक कला आ अंतर्मन के आधार-वक्तव्य हवे । भोजपुरी राज्यसे अधिक समाज पोसित ' हवे । ओम्में कण्ठ- स्वर से ले के नएपन के प्रक्रिया के अनेक रूप हवें । असली महत्व हवे - समाज में भोजपुरी के साहित्य-आलोड़न आ भासिक परिमार्जन। डॉक्टर सीताकांत महापात्र के सब्दन में-- साहित्य मंच के भासा हवे , मैजिक के भासा हवे । ई भावाभिव्यक्ति के नूतन मोड़ हवे , अपरिचित महादेस में नयका मील के पत्थर हवे । 
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लेखक के परिचय: 

डॉक्टर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव  '' परिचय दास ''

जन्म- 1 मार्च, 1964  , ग्राम- रामपुर काँधी , पोस्ट- देवलास , ज़िला- मऊ , उत्तर प्रदेश .

सांस्कृतिक कविता , भारतीय आलोचना आ  ललित निबंध में नए विन्यास क प्रयत्न .भोजपुरी कविता में एगो  नए शिल्प -पथ क सृजन .  30 से अधिक पुस्तक.    लेखन '' परिचय दास '' नाँव  से.    परिचय दास के परिचय   '' विकिपीडिया ''  प्रकासित कइले बा.  कृपया देखल जाव -- WIKIPEDIA PARICHAY DAS.

भोजपुरी , मैथिली , हिन्दी में लेखन .  गोरखपुर विश्व विद्यालय से साहित्य के समाजशास्त्र में डॉक्टरेट . सार्क साहित्य सम्मेलन , नई दिल्ली में कविता-पाठ के अतिरिक्त भारत की ओर से नेपाल सरकार के नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान , काठमांडू में भोजपुरी पर व्याख्यान.परिचय दास क रचना कई विश्वविद्यालय के एम. ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित.

भोजपुरी-मैथिली पत्रिका - 'परिछन' के संस्थापक-संपादक एवं हिन्दी पत्रिका - 'इंद्रप्रस्थ भारती' के संपादक रहले .

भोजपुरी-हिन्दी में प्रकाशित द्विभाषी प्रमुख प्रकाशित प्रमुख पुस्तक - 'संसद भवन की छत पर खड़ा हो के ', 'एक नया विन्यास', 'युगपत समीकरण में', 'पृथ्वी से रस ले के ', 'चारुता', 'आकांक्षा से अधिक सत्वर', 'धूसर कविता';, 'कविता चतुर्थी', 'अनुपस्थित दिनांक', 'मद्धिम आंच में', 'मनुष्यता की भाषा का मर्म ' [सीताकांत महापात्र की रचनात्मकता पर संपादित पुस्तक ] , 'स्वप्न, संपर्क, स्मृति' [ सीताकांत महापात्र पर संपादित दूसरी पुस्तक ],
''भिखारी ठाकुर '' [ भोजपुरी में संपादित पुस्तक ] , भारत की पारम्परिक नाट्य शैलियाँ [ दू  खण्ड में ] , 'भारत के पर्व [ दू  खण्ड में ].

 '' परिचय दास '' भारतीय कविता आ ललित निबंध  में एगो  महत्त्वपूर्न नांव  हवे .

ऊ  हिन्दी अकादेमी ,दिल्ली सरकार के   सर्वोच्च अधिकारी तथा विभागाध्यक्ष रहि  चुकल  हवें .   साथे , मैथिली-भोजपुरी अकादेमी,   दिल्ली  सरकार  के  सर्वोच्च अधिकारी एवं विभागाध्यक्ष रहि  चुकल हवें 

 सुभारती विश्वविद्यालय,मेरठ  में  शोध-निर्देशक [ पी एच. डी  गाइड ] हवें  .   उहाँ  हिन्दी एवं भारतीय संस्कृति के  मानद प्रोफेसर   हवें .राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ , तिरुपति [ डीम्ड यूनिवर्सिटी ] के विजिटिंग प्रोफ़ेसर आ  मेंबर, बोर्ड आव स्टडीज़  -हिन्दी  हवें

 उनकर 30 से अधिक लिखित एवं संपादित पुस्तकें हईं . साहित्य,कला,अनुवाद,लोक संदर्भ, सांस्कृतिक चिंतन, भारतीय साहित्य,साहित्य के  समाज शास्त्र इत्यादि पर कार्य हवे . कविता ,ललित निबंध,आलोचना इत्यादि में  हस्तक्षेप  हवे .

साहित्य संस्कृति के लिए  7 सम्मान मिल चुकल हवे जेम्मे   द्विवागीश सम्मान, श्याम नारायण पांडेय सम्मान, भोजपुरी कीर्ति सम्मान,एडिटर्स चाय्स सम्मान, रोटरी क्लब साहित्य सम्मान इत्यादि महत्त्वपूर्न  हवें .

परिचय दास  के   जीवनी  आ  साहित्य जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय,छपरा [बिहार]  आ  वीर कुवर सिंह विश्वविद्यालय ,आरा [बिहार ] के एम. ए.  में  चतुर्थ सेमेस्टर [ फाइनल ईयर ] में पढ़ावल जालीं .
साथे  उन कर  कविता  राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति    [ डीम्ड यूनिवर्सिटी ] के एम .ए . [ हिन्दी ] के पाठ्यक्रम में पढ़ावल  जाले.
 ऊ कई गो  विश्वविद्यालयन  के एम. ए. [हिन्दी ] क पाठ्यक्रम बना  चुकल हवें . वोह  समितियो  क सदस्य हवें    , जवन एम. ए. हिन्दी क पाठ्यक्रम बनावेले.

ऊ    नेपाल  में आयोजित साहित्य अकादेमी की ओर से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन [2012 ,फ़रवरी ]  के  सदस्य रहि चुकल बाड़ें    , जेम्में  ऊ    व्याख्यान  दिहले रहलें . वोह  सम्मेलन  में  मैथिली,भोजपुरी ,लिंबू, थारू, नेपाली आ  हिन्दी भाषा पर चर्चा भइल रहे. .

ऊ  संस्कृत,हिन्दी,अंग्रेज़ी,भोजपुरी,मैथिली आदि भाषा में  गति  रखेलें . ऊ  हिन्दी क प्रतिष्ठित पत्रिका -'इंद्रप्रस्थ भारतीक संपादन कर चुकल हवें .  मैथिली-भोजपुरी की प्रतिष्ठित पत्रिका '' परिछन' के संस्थापक संपादक रहि चुकल हवें. ''परिछन '' कुंवर सिह विश्वविद्यालय आरा,बिहार आ जयप्रकाश यूनिवर्सिटी,छपरा, बिहार के एम. ए. [ भोजपुरी ] के पाठ्यक्रम में पढ़ावल जाले .

दिल्ली में आयोजित सार्क सम्मेलन  में   ऊ   कविता -पाठ कइले रहलें. [2011].

हिन्दी अकादेमी,दिल्ली  आ  मैथिली-भोजपुरी अकादेमी,दिल्ली के सचिव रहत ऊ  300 से अधिक साहित्यिक -सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित  कइलें . .भारतीय कविता के 3 अखिल भारतीय आयोजन कइलें , जेम्में  25 भाषा के साहित्यकार अइलें.
लालक़िला  [ दिल्ली ] पर 2 बेर  कवि-सम्मेलन आ  फ़ीरोज़शाह कोटला मैदान [ दिल्ली ]  में 1  बेर कवि-सम्मेलन आयोजित कइलें  ,जवन अखिल भारतीय रहल.. एकरे  अलावा आलोचना, निबंध,कथा,अनुवाद आदियो के  आयोजन कइलें  , जवन अपन गंभीरता आ  संसर्ग खातिर जानल जालें.
   
 डॉक्टर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव  '' परिचय दास ''
७६ , दिन अपार्टमेंट्स, सेक्टर-४, द्वारका, नई दिल्ली-११००७८
मोबाइल-०९९६८२६९२३७  /  ई .मेल-   parichaydass@rediffmail.com












भोजपुरी क सर्जनात्मकता/ परिचय दास

प्रेम क अनुवाद ना हो सकेला  (मुख्य पेज जाईं-  https://bejodindia.blogspot.com /   हर 12 घंटा पर  देखीं -  FB+  Bejod ) ...