Saturday 16 September 2017

काहें रचीलाँ हम भोजपुरी में / परिचय दास

कहल-सुनल -3


वइसे त , भाषा अभिव्यक्ति क एगो  एक साधन ह बाकिर  ओकर  भूमिका इतिहास आ  संस्कृति के धारन कइलहू  क   ह , एसे  अपन मातृभाषा में साहित्य रचला  के  प्रयोजने  अनन्य ह। चूंकि एम्मे  हमनी के  स्मृति आ  बिम्ब होलें एह नाते  एकर   सौन्दर्य एगो   आत्मीयता  आ  निकटता के  सर्जना करेला । साहित्य-कला हमनी  के अंतः विवेक आ  संवेदन क  आवश्यक फलश्रुति ह । हमनी के  अनुभव कइल जाला  कि समाज क  पतनोन्मुख हिस्सा हमनी के  ' अंतसआ  इयतापर गैर-जरूरी दबाव डालेला  , बाकिर ध्यातव्य हवे  कि साहित्य क अंतःकरन  समाज क उपनिवेश नइखे । बजार के नकारात्मक प्रभाव आ  राजनीतिक दर्शनन  क छाया साहित्य के  आत्म  के  अनुकूलित कइल चाहत हवें , बाकिर साहित्य समय आ दर्शन के अतिक्रांत कइला के  महासंवेदना ह।

जब  हम  भोजपुरी में साहित्य रचीलाँ  त  ध्वनियन , शब्दन  आ  वाक्यांशन  में शब्दक्रमन  के  विशिष्टता आ  उनके  क्रमबद्ध रूप दिहला के  विशिष्ट भंगिमा से पता चलेला   कि भाषा हमरा खातिर केतना  महत्त्वपूर्ण ह। भाव, बिम्ब आ  लय संश्लेषन  के  वाचिक आ  लिखित माध्यम से सम्प्रेषित कइला  में भाषा क हमरे खातिर  अद्वितीयता ह । सम्प्रेषनीयता से संस्कृति क निर्माण होला । हमरा  शिल्प के सर्जन में किसान-शक्ति क रचनात्मकता ह , सथहीं   , परम्परा आ  समकाल के  नूतन सम्भावना से देखला  क प्रत्ययो । किसान के  अपन मातृभाषा बोलला  आ  एगो  बृहत्तर राष्ट्रीय या महाद्वीपीय भूगोल से जुरल  रहला  में कौनों अंतर  ना  देखाई  देला । हमरे शिल्प के उपकरण आज के चराचर के  संदर्भित करेलन । प्राकृत आ  अपभ्रंश क ऐतिहासिक अवस्थिति के  देखत  आज  के  भाषिक-साहित्यिक रूपाकृति में भाषा के विलोपन के  प्रक्रिया के  समझे के होखी । ' जरिन   की ओर लवटला  '   के  बाति  कहीं अलगा  लागू होत होखी । हम  अपन लेखन के  जर  से निकलले    मानीलां । आखिर हमार  साहित्य जरमूल से संपृक्त जन खातिर त ह , उन्हनीये  क  भंगिमो  ओम्मे होखी ।

सबसे पाहिले त  ई कि हम  केकरा खातिर लिखीलां  ?   जेकरा   खातिर हम  लिखीलां   ओकरा खातिर भाषा क चुनाव का  अर्थ रखेला  ? ई  प्रश्न अत्यंत मूल्यवान ह  कि अंग्रेजी , चाहे  अन्य प्रभुत्वकारी भाषा अइसन  का ना अभिव्यक्त क  पावेलीं  जवन  भोजपुरी करेले । वास्तव में अंग्रेजी  क  कथ्य ऊ  होइए ना सकेला जवन भोजपुरी के होखी  ।

भोजपुरी आ अंग्रेजी  क  सांवेदनिक व सामाजिक पृष्ठभूमि अलग-अलग ह । भाषा में वास्तविक जनप्रेषण   यथास्थितिवाद के  चुनौती ह । भोजपुरी भाषा में बोले  वाले इहाँ  नगर-महानगर, हर कहीं हवें , हर तबका के  ।  यानी कि ई  जीवंत भाषा ह आ धरती से जुरल ।  ई  महज शासन आ  किताब के  भाषा नइखे । हम उहे गाइलां  , जवन  जनता गावेले आ  हमार  मन गावेला । हमार  रचना क  विषय-वस्तु आ  बिम्ब आत्म व जन संघर्ष से लिहल गइल हवें । आत्म व जन संघर्ष के बीच एगो  गहिर  सम्बंध ह । सांस्थानिक  आ  जन स्तर पर सांस्कृतिक विनिमय अत्यंत आवश्यक ह ।

कई बेर देखल गइल  ह कि संस्कृति के प्रतिमानन  के  रचना में  पश्चिमी हस्तक्षेप हद से जियादा बढ़ि  गइल हवे । पश्चिम क  मूल्य हमनी के  मूल्य ना हो सकेलन  बाकिर  सौन्दर्य के विभिन्न तंतुअन  द्वारा हमनी के उप्पर  उन्हनी के  आरोपित कइला  के  सूक्ष्म प्रक्रिया जारी ह । हमनी के एह  स्थिती में पहुंचे लागल हईं जा  कि साहित्य, जीवन आ  सामाजिक संघर्षन  के बारे में एगो  खास दृष्टिकोण-जइसन  बनल जात हवे  जवन , हमनी के जरन से ना आवेला । हमनी के  साहित्य के व्याख्या पश्चिमी धुरी पर ठाढ़ होके कइल जाला आ  दुनिया के ओइसने देखवला में लगि जाइल जाला  ।  ई कवनहूँ  तरह उचित नइखे । पश्चिमी सिद्धांत के जानल एगो अलग बाति बा आ साइत ऊ जरूरियो ह ।

होला का , कि जवन  शिक्षा आ  संस्कृति के  पश्चिमी आधार आ अंग्रेजी  के बल पर हमनी के  समझला के कोशिश कइल जाला  , ओम्में अपन जरि  पूरी तरह आत्मसात ना  होले एहसे  जब कब्बों  बड़  सांस्कृतिक आ  सामाजिक परिवर्तन के  आवश्यकता होले  त , ऊ दृष्टिकोण काम क  ना  होला । खाली सिद्धांत के बात अलग बा ।  किसान के अँगोछा  क  संस्कृति अंग्रेजी  में ना लियावल जा सकल जाला , अइसन हमार मानल हवे । राष्ट्र द्वारा बोलल  जाये  वाली भाषन  में उपलब्ध संस्कृति आ  इतिहास क  समृद्ध राष्ट्रीय परम्परा क  प्रयोग क  के  शक्ति पावल  जा सकल जाला । हमनी के  वास्तविक साहित्य तब्बे  विकसित हो सकेला , जब  भारत के किसान समुदाय क  समृद्धि  संस्कृति, भाषा आ इतिहास के  तह  में अपन जरिन  खातिर  प्रवेश करे। इहां किसान समुदाये अइसन हवे , जवन अधिक  अधिक संख्या में ह आ ओकर जाहिर रचनात्मक-सांस्कृतिक महत्त्व हवे । दुर्भाग्य से आज ओकर  आवाज़  बहुते  कम सुनल जा रहल हवे  आ  ऊ आत्महत्या कइला  के  विवश हवे । रचनाकर्म करत समय हमके  अतीत क  समस्त ध्वनि, चीख, प्रेम, संघर्ष के स्वर सुनाई देला आ ई  स्वर  अइसन भाषा में नहीं हो सकेलन  जेकर  वास्तविक जरि भारत के  धरती में न होखे  या  जनसंघर्ष से जुरल ना होखे ।

प्रत्येक मनई  के  संस्कृति के सकारात्मक तत्वन  के  मेराइये के    मानवीय मूल्यन आ   परम्परा क अइसन अधार तइयार  हो सकेला जवन  वैश्विक प्रभाव छोड़ सके । आर्थिक  आ राजनैतिक मुक्ति, वास्तविक मुक्ति क  बुनियादी शर्त हवे  त  वोह  आर्थिक आ  राजनैतिक मुक्ति  क  यात्रा नपला के   पैमाना हमनी के संस्कृति, मूल्य  आ  दृष्टिकोण हवें  ।

 साहित्य क  एगो  गुन  आत्मसंवर्धनो  ह, जेम्मे  आलोचनात्मक मानसिकतो  सम्मलित हवे । हम  भोजपुरी आ  हिन्दी के माध्यम से समग्र परिवेश के  आलोचनात्मक ढंग से आकलन आ  मूल्यांकन क पाइलां । सथहीं  एह प्रक्रिया में उपलब्ध उपकरनन  के  सहायता से दूसर संस्कृतियन आ  पुरहर दुनिया क  आकलन आ मूल्यांकनो । हमनी के  एगो  स्वतंत्र देश में रहल जाला ।  कवनहूँ   स्वतंत्र देश के  अपन संस्कृति के अध्ययन से जुरल  अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय क  काम दुसरा  देशन  के बदले स्वयं करे के चाहीं । राष्ट्रीय संस्कृति के  पश्चिमी-अभिमुखी निर्णयन  के  गुलाम बनावल   देश के लोगन  के प्रति विश्वासघात ह । ओम्मे हमनी के  संघर्ष क  सौन्दर्यबोध ना होखी  आ  मनुष्य क  रचनात्मकता के  शक्ति क  निरादरो । इतिहास के हमनी के  अनुभवन के  अभिव्यक्ति हमनी के  अपन  साहित्य में इहाँ  के  माटी के  सुगंधे   से  सम्भव ह ।


हमरा  मन के  रचना में विविध भाषा-साहित्य  क  संघनन ह । ओम्मे  अपन धरती ह । भाषा क  सहजता हमरा में  सम्पोषित होले ना कि  कट्टरता ।  कट्टरता  हिंसाचारी आ लोकविरुद्ध होले । हमार  साहित्य संवादधर्मी आ  प्रीतिकर्मी ह । मातृभाषा में संस्कृति के  सर्जनात्मकता क  सहजता सम्भव हवे ।

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लेखक- परिचय दास 

लेखक का ईमेल - parichaydass@rediffmail.com

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भोजपुरी क सर्जनात्मकता/ परिचय दास

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