माँ से ही आइल फसलन के हरियरी हमरा भित्तर
आमें के बउरी से मंहकत भाषा माँ पहुंचवली
अन्तःस्थल में हमरा ..
मातृ भाषा ......
पूर्वाह्न के रंग - लग्न
अन्तःस्थल में हमरा ..
मातृ भाषा ......
पूर्वाह्न के रंग - लग्न
समा गइल पोर-पोर में दूध के मिठास से
माँ से ही आइल फसलन के हरियरी हमरा भित्तर
राति में चन्द्रमा के नीम -मीठ उजियार में सपना आइल
माँ के गरम गोद में सुत्तत हमरा नियन शिशु के
पृथ्वी से कम बड़ नइखे माँ क चुम्बकत्व
उहां प्यार भरल अइसन ओरहन ह जहां रोमिंग ना लगे
जहां प्रत्येक शब्द ह : ऊर्जा, साहस, प्रार्थना
नया रस्ता के स्थापत्य के आँकत आँख
एगो अइसन अभिकेंद्रक जवन महुवा के फूल नियन
परिधि में छितरा जाला
इयादन के ऊ पुरान पिटारा हमरा आँखिन में हवें
हमरी भाषा में हवें , हमरे आंसुन में हवें ऊ तमाम दिन
कालहीन चिरंतन मानस के लभ्य अँगनाई , जहां हम खेललीं -कूदलीं
श्रद्धा , विस्मय , मुग्धता से आगे जाके
कवनहूँ लघुता क हो जाला तोहरा में बड़प्पन , माँ
हर वनस्पति हो जाले सार्थक तोहमें
ख्याति के अहंकार, विलोपन के त्रास,
कर्म के जटिल आवरण टूटें बार बार
कर्म के जटिल आवरण टूटें बार बार
हम चाहीलां
हम चाहीलां अंधियार राति में , असमय में
तोहरे वात्सल्य क मंहकत स्पर्श
हमके विकल्प के भविष्यत क नया वासर दे
एक मानुषी उजियार से जवन देहले रहलू रंगन के आवृत्ति तूँ
हवा के गंध बनिके पदचाप नियन खनखनाले हमरा भित्तर
ऊ तुंहई हऊ जेसे बतिया के भोजपुरी नया अर्थ पावत रहल
ऊ तुंहई हऊ करा खातिर हम ''रउवां '' इस्तेमाल न कइलीं
तोहसे स्वस्ति -वचन लिहलीं हम
बाकिर अपन व्याकरण स्वयं निर्मित कइलीं , जइसन तूँ चाहत रहलू
तोंहसे कहिके कुछऊ हम हो जात रहलीं मुक्त , निर्भय
खाली तुंहई रहलू जहां हम कहि सकत रहलीं सब कुछ
भाषा जहां अपर्याप्त रहल आ हम निरुत्तर
अक्षर शब्द वाक्य से परे तूँ ...
लाख योजन भी तुम दूर चलि गइल होखले भलहीं
हमरा अंदर हवे तोहरे ऊर्ध्वशिखा क विपुल विश्वास
सृष्टि क साँस.
गेना के पीयर मँहक में
सन्तरा क मिठाई जवन तोहके पसंद रहल
हरियर धान के गंध क चिउरा जवन तोंहके पसंद रहल
माटी के कसोरा में
भेंटत हईं एह कविता-रूप में.
सन्तरा क मिठाई जवन तोहके पसंद रहल
हरियर धान के गंध क चिउरा जवन तोंहके पसंद रहल
माटी के कसोरा में
भेंटत हईं एह कविता-रूप में.
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कवि- परिचय दास
कवि के पता- 76, दिन अपार्टमेंट्स, सेक्टर-4, द्वारका , नई दिल्ली-110078
मोबाइल-9968269237
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