कहल-सुनल -1
भोजपुरी साहित्य
के असली रूप अब जनसमाज के समने कायदे से 'आधुनिक आ समकालीन रूप ' में आवे के चाहीं
। वइसे अबहूँ कुछ हद तक आ रहल बा । एके दूसर भासा में कहल जाय त अब हमनी के अइसन
पाठक- समाज विकसित करे के ह जवन भोजपुरी साहित्य प्राथमिकता से पढ़े। हमनी के वोह
तरह के समाज बनावे के चाहीं , जेम्मे भोजपुरी
में लिखे वाला आलोचक, निबंधकार,
कवि आ पत्रकार हमनी खातिर क्रेज के विसय होखे ।
हमनी के समाज के वैचारिक नेतृत्व करे वाले खातिर स्पृहा होखे। जे लोग सामाजिक चाहे
राजनैतिक छेत्र में सक्रिय ह , उनके कुछ इतर
कारनन आ सक्रियता के कारन लोग जानेलें । ई एगो अलगे समाजसास्त्र ह जवन लोग हमनी के
सांस्कृतिक (साहित्य, कला, संगीत, थियेटर, नृत्य इत्यादि)
नेतृत्व करेलन , विशेष तौर पर
साहित्यिक नेतृत्व, उनके प्रति हमनी
के तात्कालिक उदासीनता बहुत विकट रूप में लउकेले । वृहत्तर अर्थ में ई एक तरह के
सांस्कृतिक विपथन ह । हमनी के कइसन समाज बना रहल हईं जा जेम्में कंपनियन से पैकेज,
सोफा, एलईडी, कार, बंगला हमनी के समकालीनता में शामिल ह बाकिर
साहित्य नइखे । का हमनी के अइसन भोजपुरी समाज ना बना सकीले जहां शहरी, अर्धसहरी या ग्रामीण मेहरारू -मरद बजार जांय ,
कवनों समान खरीदें त उनके सोच में एगो भोजपुरी
के किताब या पत्रिको खरीदल सामिल होखे ?
अबहिन जवना कवि-
व्यक्तित्व के बारे में ठीक से धियान भोजपुरी समाज के ना गइल ह , ऊ हवें - बिसराम । ऊ जब बिरहा सुनावत रहलें त
फुटकर प्रसंग में एगो भिन्न प्रकृति के कविता बोलत रहे । भिखारी ठाकुर के समानांतर
या उनके कालांतर के साहित्य पर अबहिन हमनी के केन्द्रीय दृष्टि ठीक से गइल ना लगत
हवे , अइसन कुछ लोग के मत बा ।
भिखारी ठाकुर के साथे -साथे अपने अवरहूँ समकालीन साहित्यधर्मी आ साहित्य सिलपियन
के पारदरसी अन्वेसन आवस्यक ह । कवनहूँ संस्कृतिशील समाज के उद्बुद्ध होखला के
लच्छन इहे ह कि ओकर संवेदनसीलता के केतना लय ह । साहित्य वोही संवेदनमयता के
विलच्छन लय ह । समाज खाली समाज के फोटोकॉपी नइखे । कॉपी कहि के हम ओकरा के
अवमूल्यित ना करब । ओम्में अंतकरन के विसादो -संवादो हवें ।
भोजपुरी में लोक
ह त अत्याधुनिकतो हवे । लोकसंस्कृति से प्रेरित होखल या परंपरा से दम प्राप्त कइल
एगो स्वस्थ प्रकृति क निदरसन ह बाकिर ओसे आगे बढ़िके अपन समय व समाज पर दीठ गइल
हमनी के अग्रगामी बनाई । सामाजिक चेतना के बगैर हमनी कई गो फूहर संवाद या स्तरहीन
हास्य अथवा देह के अनर्थक प्रस्तुति से मुकाबला ना क पावल जाई । ई बात याद रखे के
चाहीं कि राजनीति से अधिक दूर ले साहित्य जाला , यद्यपि दूनों में द्वंद्व देखल आजु के टाइम में नासमझी होखी
। बस कहे के ई बा कि साहित्य, समाज, कला के राजनीति के उपनिवेस मानल गलत हवे । कई
बेर राजनीति तात्कालिकता से पार ना पावे त साहित्य सदी- सताब्दी- अनंतकाल खातिर
अंतरदीठ देला ।
एही से भोजपुरी
साहित्य आ सिल्प पर ठीक से धियान जाए खातिर एगो वातावरन के निर्मिति आवश्यक हवे ।
अइसन माहौल बने कि जनसमाज आलोड़ित हो उठे कि बगैर अपन लिखित साहित्य के समझले ,
पढ़ले या अवगाहित कइले हमनी के एगो निस्चित तरह
के बिंबधर्मिता, गहराई आ थाती से
वंचित रहि जाइल जाई । भोजपुरियो समाज कृषि समाज से औद्योगिक व जटिल समाज की ओर बढ़
चुकल बा । हमनी के अपन सांस्कृतिक संरच्छन खातिर अब वोही तरह के उपकरन चुने के
होखी । भोजपुरी समाज के पास अथाह, अगाध आ
स्मृति-परकता ह । हर संस्कृति में स्मृति समय क एगो मापदंड हवे । स्मृति ना त सच
पूछीं त समय ना । भोजपुरी साहित्य आत्मा के जीवित प्रतिरूप ह ।
सर्जनात्मक
भोजपुरी साहित्य धरती आ आकास के दुर्लभ मेल हवे , जेम्में परिचित बंधुत्व के संस्पर्स हवे , गोधूलि के रंग हवे । ओम्में मूल के तलाश हवे आ
केन्द्र -बिंदु के खोज। ओम्में जटिलता, वेदना, आधुनिक कला आ अंतर्मन के
आधार-वक्तव्य हवे । भोजपुरी ‘राज्य’ से अधिक ‘समाज पोसित ' हवे । ओम्में कण्ठ- स्वर से ले के नएपन के प्रक्रिया के अनेक रूप हवें । असली
महत्व हवे - समाज में भोजपुरी के साहित्य-आलोड़न आ भासिक परिमार्जन। डॉक्टर
सीताकांत महापात्र के सब्दन में-- ‘साहित्य मंच के
भासा हवे , मैजिक के भासा हवे । ई
भावाभिव्यक्ति के नूतन मोड़ हवे , अपरिचित महादेस
में नयका मील के पत्थर हवे ।
..................................
लेखक के परिचय:
जन्म- 1 मार्च, 1964 , ग्राम- रामपुर
काँधी , पोस्ट- देवलास , ज़िला- मऊ , उत्तर प्रदेश .
सांस्कृतिक कविता
, भारतीय आलोचना आ ललित निबंध में नए विन्यास क प्रयत्न .भोजपुरी
कविता में एगो नए शिल्प -पथ क सृजन . 30 से अधिक पुस्तक. लेखन '' परिचय दास '' नाँव से. परिचय दास के परिचय '' विकिपीडिया '' प्रकासित कइले बा.
कृपया देखल जाव -- WIKIPEDIA PARICHAY DAS.
भोजपुरी ,
मैथिली , हिन्दी में लेखन .
गोरखपुर विश्व विद्यालय से साहित्य के समाजशास्त्र में डॉक्टरेट . सार्क
साहित्य सम्मेलन , नई दिल्ली में
कविता-पाठ के अतिरिक्त भारत की ओर से नेपाल सरकार के नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान ,
काठमांडू में भोजपुरी पर व्याख्यान.परिचय दास क
रचना कई विश्वविद्यालय के एम. ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित.
भोजपुरी-मैथिली
पत्रिका - 'परिछन' के संस्थापक-संपादक एवं हिन्दी पत्रिका - 'इंद्रप्रस्थ भारती' के संपादक रहले .
भोजपुरी-हिन्दी
में प्रकाशित द्विभाषी प्रमुख प्रकाशित प्रमुख पुस्तक - 'संसद भवन की छत पर खड़ा हो के ', 'एक नया विन्यास', 'युगपत समीकरण में', 'पृथ्वी से रस ले
के ', 'चारुता', 'आकांक्षा से अधिक सत्वर', 'धूसर कविता';, 'कविता चतुर्थी', 'अनुपस्थित दिनांक', 'मद्धिम आंच में',
'मनुष्यता की भाषा का मर्म ' [सीताकांत महापात्र की रचनात्मकता पर संपादित
पुस्तक ] , 'स्वप्न, संपर्क, स्मृति' [ सीताकांत
महापात्र पर संपादित दूसरी पुस्तक ],
''भिखारी ठाकुर ''
[ भोजपुरी में संपादित पुस्तक ] , भारत की पारम्परिक नाट्य शैलियाँ [ दू खण्ड में ] , 'भारत के पर्व [ दू
खण्ड में ].
ऊ हिन्दी अकादेमी ,दिल्ली सरकार के
सर्वोच्च अधिकारी तथा विभागाध्यक्ष रहि
चुकल हवें . साथे , मैथिली-भोजपुरी अकादेमी, दिल्ली सरकार
के सर्वोच्च अधिकारी एवं
विभागाध्यक्ष रहि चुकल हवें
सुभारती विश्वविद्यालय,मेरठ में शोध-निर्देशक [ पी एच. डी गाइड ] हवें
. उहाँ हिन्दी एवं भारतीय संस्कृति के मानद प्रोफेसर हवें .राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ , तिरुपति [ डीम्ड यूनिवर्सिटी ] के विजिटिंग
प्रोफ़ेसर आ मेंबर, बोर्ड आव स्टडीज़
-हिन्दी हवें
उनकर 30 से अधिक लिखित एवं संपादित पुस्तकें हईं . साहित्य,कला,अनुवाद,लोक संदर्भ, सांस्कृतिक चिंतन, भारतीय साहित्य,साहित्य के समाज शास्त्र इत्यादि पर कार्य हवे . कविता ,ललित निबंध,आलोचना इत्यादि में
हस्तक्षेप हवे .
साहित्य संस्कृति
के लिए 7 सम्मान मिल चुकल हवे , जेम्मे द्विवागीश सम्मान, श्याम नारायण पांडेय सम्मान, भोजपुरी कीर्ति सम्मान,एडिटर्स चाय्स सम्मान, रोटरी क्लब साहित्य सम्मान इत्यादि महत्त्वपूर्न हवें .
परिचय दास के
जीवनी आ साहित्य जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय,छपरा [बिहार]
आ वीर कुवर सिंह विश्वविद्यालय ,आरा [बिहार ] के एम. ए. में
चतुर्थ सेमेस्टर [ फाइनल ईयर ] में पढ़ावल जालीं .
साथे उन कर
कविता राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ,
तिरुपति
[ डीम्ड यूनिवर्सिटी ] के एम .ए . [ हिन्दी ] के पाठ्यक्रम में पढ़ावल जाले.
ऊ कई गो
विश्वविद्यालयन के एम. ए. [हिन्दी
] क पाठ्यक्रम बना चुकल हवें . वोह समितियो
क सदस्य हवें , जवन एम. ए. हिन्दी क पाठ्यक्रम बनावेले.
ऊ नेपाल
में आयोजित साहित्य अकादेमी की ओर से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन [2012 ,फ़रवरी ]
के सदस्य रहि चुकल बाड़ें , जेम्में ऊ व्याख्यान
दिहले रहलें . वोह सम्मेलन में
मैथिली,भोजपुरी ,लिंबू, थारू, नेपाली आ हिन्दी भाषा पर चर्चा भइल रहे. .
ऊ संस्कृत,हिन्दी,अंग्रेज़ी,भोजपुरी,मैथिली आदि भाषा में
गति रखेलें . ऊ हिन्दी क प्रतिष्ठित पत्रिका -'इंद्रप्रस्थ भारती' क संपादन कर चुकल
हवें . मैथिली-भोजपुरी की प्रतिष्ठित
पत्रिका '' परिछन' के संस्थापक संपादक रहि चुकल हवें. ''परिछन '' कुंवर सिह विश्वविद्यालय आरा,बिहार आ जयप्रकाश यूनिवर्सिटी,छपरा, बिहार के एम. ए.
[ भोजपुरी ] के पाठ्यक्रम में पढ़ावल जाले .
दिल्ली में
आयोजित सार्क सम्मेलन में ऊ
कविता -पाठ कइले रहलें. [2011].
हिन्दी अकादेमी,दिल्ली
आ मैथिली-भोजपुरी अकादेमी,दिल्ली के सचिव रहत ऊ 300 से अधिक साहित्यिक -सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कइलें . .भारतीय कविता के 3 अखिल भारतीय आयोजन कइलें , जेम्में
25 भाषा के साहित्यकार
अइलें.
लालक़िला [ दिल्ली ] पर 2 बेर कवि-सम्मेलन
आ फ़ीरोज़शाह कोटला मैदान [ दिल्ली ] में 1 बेर कवि-सम्मेलन आयोजित कइलें ,जवन अखिल भारतीय रहल.. एकरे अलावा
आलोचना, निबंध,कथा,अनुवाद आदियो के आयोजन कइलें , जवन अपन गंभीरता आ संसर्ग खातिर जानल
जालें.
डॉक्टर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव '' परिचय दास ''
७६ , दिन अपार्टमेंट्स, सेक्टर-४, द्वारका, नई दिल्ली-११००७८
मोबाइल-०९९६८२६९२३७ / ई
.मेल- parichaydass@rediffmail.com
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