कहल-सुनल- 4

साहित्य चुनौती स्वीकार कइला के साथे एही प्रक्रिया द्वारा विज्ञान, दर्शन, तकनीक आ अन्य अनुशासनन क दुआर खुलेला । भोजपुरी समाज के वर्तमान स्थिति के देखीं त पता चलेला कि खेती-किसानी के हालत नीमन नइखे , उद्योगन के कमी के चलते मजदूरन क अपना इलाका से बड़हन पलायन जारी ह. आपाराधिक आ राजनैतिक हिंसा जारी हईं । भट्ठा आ इस्कूल खोलल - दुइए काम गांवन में ख़ास हो गइल बाड़न । व्यावसायिक फसलन के नितांत अभाव ह आ पारंपरिक खेती से उचित प्राप्ति ना होखला के कारन पेट चलावल मुश्किल ह । गांवन में य नवछेड़ियन के लग्गे कवनो काम-काज ना होखला के कारन अधिकांश के दिशा गलत हो रहल हवे । यह तरह पूरे अंचल के सम्हने वर्तमान आ भविष्य के अस्तित्व क गहिर संकट हो गइल बा । सडक़न क पुनरुद्धार होखल कठिन होत जा रहल हवे आ बिजुरी के पर्याप्त ना होखला के वजह से औद्योगिक आ कृषि संस्थानन पर गहिर आ बाउर असर हो रहल हवे । पानी क स्रोत लगातार घट रहल ह आ नदियन में यह कदर प्रदूसन बढ रहल ह कि पवित्र शब्द सिरिफ अंतस के भावना हो के रहि गइल बा ।
गांवन के पारिस्थितिकी तेजी से बदल रहल हवे । जानवरन क पालल दूभर होत जा रहl ह, काहें से कि उनके भरन -पोसन क खरच उठावल सान नइखे रहि गइल । चरागाह सिमटत जा रहल हवे आ वनन के अंधाधुंध कटाई जारी ह, बाग उजडत जा रहल हवें । यंत्र अराम जरूर पहुंचवले हवें , बाकिर उनकर सुविधा प्राप्त कइले क आर्थिक कठिनाई मारक बन गइल हवे । लोगन के आपसी संबंधन में जटिलता आवत जा रहल हवे , सहजता खत्म हो रहल हवे । गांवन के गुटबाजी आ अपराध के धंधा क फलल -फूलल यह कदर बढत गइल हवें कि गांवन के आत्मा क संरचने अनपहचानल -जइसन लगे लगल हवे । राजनीति क कार्य देश के सरीर आ मन क स्वस्थ विकास कइल रहल , ऊ अब यह अंचल खातिर वोटन के सौदागरी में बदलत जा रहल ह, जेसे स्वच्छंद ताकत आ सत्ता पावल जा सके।
लोकतंत्र में सत्ता पावल कुछऊ बाउर नइखे , बुराई ओह तरीके में ह, जौना से ऊ पावल जाले । एही कारन हत्यन क खूंखार सिलसिला चल रहल हवे । ई भूलल ना जा सकल जाला कि बंदूकन क मानसिकता समाज क नया विधान रच रहल ह। पूर्वी उत्तर प्रदेश आ बिहार में एके देखल जा सकल जाला । भोजपुरी अंचल में पहिले मेहरारू सादी-बियाह के अवसर पर पांरपरिक गीत गावत रहलीं । अब एक त यह तरह के रसम खतम होत जा रहल हईं , अगर बचलो हईं त फिल्मी गीतन के रूप में। आनुष्ठानिको गीत अब फिल्मी धुनन में गावल जालें । ई एगो एक समकालीन परिवर्तन हवे । सहरन के अधकचर असर गांवन के उप्पर पड रहल हवें । मुंबई से चलल फैसन दिल्ली होत भोजपुरी अंचल में पहुंच जाला । भोजपुरी लोक गायक आ लोकनर्तकन के बदले सार्वजनिक रूप से वीडियो फिल्म देखल नई स्टाइल बन चुकल बा । टी0वी0 पारस्परिक संबंधन के विस्तार में कटौती कइले बिया ।
भोजपुरी में बने वाली फिलिम ज्यादातर पापुलर किसिम के होलीं सन । लोग अगर भोजपुरी फिलिम देखे लन त यह खातिर कि ओम्में अबहियों उनकर जीवन आ धुन कुछ रिफलेक्ट होलीं सन , जवन कि हिंदी फिलमन में ऊ अब कम होत जा रहल हवे । यद्यपि भोजपुरी फिल्मन के स्तर पर बिचार के बहुते जरूरत बा. एगो गहन पुनर्विचार से भोजपुरी फिल्मन के भला होखी । आज के हिंदी फिलिम हांगकांग, लंदन, वाशिंगटन, न्यूयार्क वगैरह में बनत आ उच्च वर्ग क प्रतिबिंबन करेली सन । उनकर अमूमन लच्छ एन आर आइये हो गइल बा , जहां म्यूजिक आ सीडी बेंचके अकूत कमाई हो जा रहल हवे । आजो भोजपुरी में एक्को दैनिक अखबार नइखे ।अइसन कवनो पत्रिका नइखे जेकर पहुंच सुदूर अंचल के लोगन तक होखे ।
भोजपुरी में बात कइल कम्मे होत जा रहल बा ,ऊ अधिका में गांवने ले सिमट के रहि गइल बा । चार सिच्छित लोग अगर इकट्ठा होके बात करें- चाहे ऊ गांव की चट्टी पर होखे , चाहे इसकूल में, चाहे कस्बा के दूकान चाहे ऑफिस में-भोजपुरी के बदले हिन्दिये क प्रयोग हो रहल बा । पढल -लिखल लोगन आ संभ्रांत लोगन के अपन रिसतेदार आ जांय त का मजाल कि भोजपुरी में बात करें। सर्वेच्छन में पावल गइल हवे कि भोजपुरी के ओइसने हीनताग्रंथि क सामना करे के होला , जइसे हिंदी के अंग्रजी से। एही से भोजपुरी क नया अन्वेसन जरूरी ह । गांव के स्थानीय कला -- खटिया-बुनाई, चटाई-बुनाई, भेंड क़े ऊन से कंबल-बुनाई, बांस के खपच्चियन क आर्ट,गांव के भीत(दीवार) के ऊपर उकेरल कला क निरंतर हास हो रहल हवे । कबड्डी, चिकई, खो-खो, फर्री, लंबी कूद, ऊँची कूद, कुसती आदि खेल पुरान जइसे जमाना के की चीज हो गइल हईं । क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय ह। कबों भोजपुरी गांव में हाथ क गेंद (वॉलीबाल) सबसे आकरसक खेल होत रहे , जिसके बडा से बडा टूर्नामेंट आयोजित होत रहलन । गुल्ली-डण्डा सायदे कतहीं लउके । मैनेजमेंट के कमी ।
भोजपुरी अंचल में सिच्छा में नई चेतना आइल हवे । क्रय-सक्तियो में बढोत्तरी भइल बा बाकिर इतना ना कि ओके अत्यंत उल्लेखनीय मानल जाय । भोजपुरी समाज एगो स्वाभिमानी आ समय के अनुकूल आ आगे चले वाला समाज ह। ओके अन्य जगहिन् पर प्रताडना सहे के पड़े , ओकरे विरुद्ध ई आवस्यक ह कि भोजपुरी प्रदेसन के सासक जीविका के नया अवसर सृजित करें। भोजपुरी समाज के हर आवस्यकता के धियान में रखत योजना तैयार कइल जाव । उद्योगन के विकास के बिना समाज क आधुनिक विकास संभव नइखे । कृषि पर धियान दिहले आ ओके लाभानुकूल बनवला से मजूर -पलायन काफी रुक सकेला । भोजपुरी अंचल के पर्यटन-स्थल उपेच्छित पैदल हवें, कलाएं मर रहल हईं । इन्हनी पर एगो कार्य योजना के अधीन तुरंते विकास क कार्यवाही प्रारंभ करे के चाहीं ।
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ई आलेख के लेखक - परिचय दास
लेखक के ईमेल - parichaydass@rediffmail.com
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