Friday 13 October 2017

भोजपुरी समाज के नयकी चुनौती

कहल-सुनल- 4 





साहित्य चुनौती स्वीकार कइला के साथे  एही  प्रक्रिया द्वारा विज्ञानदर्शनतकनीक  आ अन्य अनुशासनन  क दुआर खुलेला  । भोजपुरी समाज के  वर्तमान स्थिति के  देखीं त  पता चलेला  कि खेती-किसानी   के  हालत नीमन नइखे उद्योगन  के  कमी के चलते मजदूरन  क  अपना  इलाका  से बड़हन   पलायन जारी ह. आपाराधिक आ  राजनैतिक हिंसा जारी हईं । भट्ठा आ इस्कूल  खोलल - दुइए  काम   गांवन  में ख़ास  हो गइल बाड़न । व्यावसायिक  फसलन  के  नितांत अभाव ह  आ पारंपरिक खेती से उचित प्राप्ति ना होखला  के कारन  पेट चलावल  मुश्किल ह । गांवन  में य नवछेड़ियन के लग्गे कवनो  काम-काज  ना  होखला  के कारन  अधिकांश के दिशा गलत हो रहल हवे । यह  तरह पूरे अंचल के सम्हने  वर्तमान आ भविष्य के अस्तित्व  क  गहिर  संकट हो गइल बा । सडक़न  क  पुनरुद्धार होखल  कठिन होत जा रहल हवे  आ  बिजुरी    के पर्याप्त ना  होखला  के वजह से औद्योगिक आ  कृषि संस्थानन  पर गहिर आ बाउर असर हो रहल हवे । पानी क  स्रोत लगातार घट रहल ह  आ  नदियन  में यह  कदर प्रदूसन    बढ रहल  ह  कि पवित्र शब्द सिरिफ  अंतस  के  भावना हो के  रहि गइल बा ।


 गांवन  के पारिस्थितिकी तेजी से बदल रहल  हवे । जानवरन  क पालल  दूभर होत जा रहl ह, काहें से कि उनके भरन -पोसन   क खरच  उठावल  सान नइखे  रहि   गइल । चरागाह सिमटत जा रहल  हवे आ  वनन   के  अंधाधुंध कटाई जारी ह, बाग उजडत जा रहल  हवें  । यंत्र  अराम जरूर पहुंचवले  हवें , बाकिर  उनकर  सुविधा प्राप्त कइले  क  आर्थिक कठिनाई मारक बन गइल  हवे । लोगन  के आपसी संबंधन  में जटिलता आवत  जा रहल  हवे , सहजता खत्म हो रहल हवे । गांवन  के  गुटबाजी  आ अपराध के धंधा क फलल -फूलल  यह  कदर बढत गइल  हवें  कि गांवन  के  आत्मा क  संरचने अनपहचानल -जइसन लगे  लगल  हवे । राजनीति क  कार्य देश के सरीर आ मन क  स्वस्थ विकास कइल  रहल , ऊ  अब यह  अंचल खातिर  वोटन  के  सौदागरी में बदलत जा रहल  ह, जेसे  स्वच्छंद ताकत आ  सत्ता पावल  जा सके।


लोकतंत्र में सत्ता पावल  कुछऊ बाउर नइखे , बुराई ओह तरीके में ह, जौना से  ऊ पावल  जाले  । एही कारन  हत्यन  क खूंखार सिलसिला चल रहल हवे । ई  भूलल  ना  जा सकल जाला  कि बंदूकन  क  मानसिकता समाज क नया विधान रच रहल ह। पूर्वी उत्तर प्रदेश  आ बिहार में एके देखल  जा सकल जाला । भोजपुरी अंचल में पहिले  मेहरारू  सादी-बियाह के अवसर पर पांरपरिक गीत गावत रहलीं । अब एक त यह  तरह के रसम खतम होत जा रहल हईं , अगर बचलो  हईं  त फिल्मी गीतन  के रूप में। आनुष्ठानिको  गीत   अब फिल्मी धुनन  में गावल  जालें । ई एगो  एक समकालीन परिवर्तन हवे । सहरन  के अधकचर असर गांवन  के उप्पर  पड रहल  हवें । मुंबई से चलल  फैसन दिल्ली होत  भोजपुरी अंचल में पहुंच जाला । भोजपुरी लोक गायक आ  लोकनर्तकन  के बदले सार्वजनिक रूप से वीडियो फिल्म देखल  नई स्टाइल बन चुकल बा । टी0वी0 पारस्परिक संबंधन  के विस्तार में कटौती कइले बिया ।

भोजपुरी में बने  वाली फिलिम  ज्यादातर पापुलर किसिम  के होलीं सन । लोग अगर भोजपुरी फिलिम देखे लन   त यह खातिर कि ओम्में  अबहियों  उनकर  जीवन आ  धुन कुछ रिफलेक्ट होलीं सन , जवन कि हिंदी फिलमन  में ऊ  अब कम होत जा रहल हवे । यद्यपि भोजपुरी फिल्मन के स्तर पर बिचार के बहुते जरूरत बा. एगो गहन पुनर्विचार से भोजपुरी फिल्मन के भला होखी । आज के  हिंदी फिलिम  हांगकांग, लंदन, वाशिंगटन, न्यूयार्क वगैरह में बनत आ  उच्च वर्ग क प्रतिबिंबन करेली सन । उनकर  अमूमन लच्छ  एन आर आइये  हो गइल बा , जहां म्यूजिक आ सीडी बेंचके  अकूत कमाई हो जा रहल हवे । आजो  भोजपुरी में एक्को   दैनिक अखबार नइखे ।अइसन कवनो   पत्रिका नइखे  जेकर  पहुंच सुदूर अंचल के लोगन  तक होखे ।

भोजपुरी में बात कइल  कम्मे होत  जा रहल  बा ,ऊ  अधिका में  गांवने  ले  सिमट के रहि गइल बा । चार सिच्छित  लोग अगर इकट्ठा  होके  बात करें- चाहे ऊ  गांव की चट्टी पर होखे , चाहे इसकूल में, चाहे कस्बा  के  दूकान चाहे  ऑफिस में-भोजपुरी के बदले हिन्दिये  क प्रयोग हो रहल बा । पढल -लिखल  लोगन  आ संभ्रांत लोगन  के अपन रिसतेदार आ जांय  त का  मजाल कि भोजपुरी में बात करें। सर्वेच्छन  में पावल गइल हवे  कि भोजपुरी के ओइसने  हीनताग्रंथि क  सामना  करे के होला , जइसे  हिंदी के  अंग्रजी से। एही से  भोजपुरी क  नया अन्वेसन  जरूरी ह । गांव के स्थानीय कला --  खटिया-बुनाई, चटाई-बुनाई, भेंड क़े ऊन से कंबल-बुनाई, बांस के  खपच्चियन  क  आर्ट,गांव के  भीत(दीवार) के ऊपर उकेरल  कला क  निरंतर हास हो रहल हवे । कबड्डी, चिकई, खो-खो, फर्री, लंबी कूद, ऊँची कूद, कुसती आदि खेल पुरान जइसे  जमाना के  की चीज हो गइल हईं । क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय ह। कबों भोजपुरी गांव में हाथ क   गेंद (वॉलीबाल) सबसे आकरसक  खेल होत रहे , जिसके बडा  से बडा  टूर्नामेंट आयोजित होत रहलन । गुल्ली-डण्डा सायदे कतहीं  लउके  । मैनेजमेंट के कमी ।  

भोजपुरी अंचल में सिच्छा  में नई चेतना आइल हवे । क्रय-सक्तियो में  बढोत्तरी भइल बा बाकिर इतना ना  कि ओके  अत्यंत उल्लेखनीय मानल  जाय । भोजपुरी समाज एगो स्वाभिमानी आ  समय के अनुकूल आ आगे चले  वाला समाज ह। ओके अन्य जगहिन्  पर प्रताडना सहे के पड़े , ओकरे  विरुद्ध ई  आवस्यक  ह  कि भोजपुरी प्रदेसन  के सासक जीविका के नया  अवसर सृजित करें। भोजपुरी समाज के  हर  आवस्यकता के धियान  में रखत योजना तैयार कइल जाव । उद्योगन  के विकास के बिना समाज क  आधुनिक विकास संभव नइखे । कृषि पर धियान  दिहले  आ ओके  लाभानुकूल बनवला  से मजूर -पलायन काफी रुक सकेला । भोजपुरी अंचल के पर्यटन-स्थल उपेच्छित  पैदल हवें,   कलाएं मर रहल   हईं । इन्हनी  पर एगो  कार्य योजना के अधीन तुरंते विकास क कार्यवाही प्रारंभ करे के चाहीं ।
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ई आलेख के लेखक - परिचय दास 
लेखक के ईमेल - parichaydass@rediffmail.com

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