Sunday 29 April 2018

बुद्ध : रंगन क समुज्ज्वल समारोह / परिचय दास

कहल-सुनल-5
बुद्ध- रंगन क समुज्ज्वल समारोह
एशिया  के  बुद्ध कइसे  एक करेलें  ? अहिंसा  आ  मनुष्यता के  जरूरत आज पहिले से अधिका काहें  ह  ??



बुद्ध एगो ऐसा विचार-स्तम्भ हवें एशिया के ''एशिया''  बनावेलन.
लेखक- परिचय दास, पूर्व सचिव, हिंदी एवं 
मैथिली- भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार 
जिनकी वजह से एशिया के  गुरुता बढ़ेला. अकेले बुद्ध अथवा गांधी एशिया के जोड़ सकेलन  भा  विश्व को गुन्हि  सकेलन बलुक गुन्ह लेबाड़न बुद्ध के खाली  धार्मिक व्यक्ति के रूप में देखल एकांगी दृष्टि ह. ऊ सांस्कृतिक आभा हवेंजइसे ई धरती आलोकित होले.

बुद्ध अतिवादिता से परे रहलन . हमनी  के  सामान्य  रूप में   अइसने होखे के चाहीं  . उहाँ  अतिवादिता के  जगह नइखे    . एसे   मध्य मार्ग एगो आवश्यकता ह.  बीना  के तार  एतना कसे  के ना चाहीं  कि टूट जांय भा एतना ढील ना होखें  कि ध्वनिये  न आये. वास्तविक जीवन में भी बहुत कड़ाई हमनी के तोर  देले  आ बहुत ढिलाई  कर्मच्युत  कर  देवेले.

कई बेर  यशोधरा के दुःख से हमनी के  दुखी होखल जाला. सिद्धार्थ के  कवनो  रस्ता अलग किसिम  के  निकारे के चाहत रहे. शायद ऊ  मार्ग अधिक ' सिद्ध अर्थ होत ! परन्तु  जवान भइल  हुआ , ऊ एगो इतिहास हवे आ  इतिहास बदलल  ना  जा सकल जाला . हमनी के  स्वप्न , स्मृति  एगो  अलग इतिहास के  संयोजित करेलन  परन्तु  यथार्थ क पक्ष इतिहास के ढेर भावेला . हमार मानल ई ह  कि यथार्थ क कवनो   एक रूप ना होला आ स्वप्नहीन यथार्थ क कवनो  अर्थ ना . यशोधरा क कसक प्रेम क  कसक ह  , सम्बन्ध क  कसक ह  , स्वप्न क  कसक ह. दुसरी ओर सिद्धार्थ मृत्यु से पार गइला के प्रक्रिया के  समझल चाहत हवें .  का  मृत्यु मनुष्य क  अंत हवे , ई बाति  सिद्धार्थ जानल  चाहत  हवें .   यशोधरा  असमाने में  मनई  के दुःख-दर्द क अंतहीन महाकाव्य रच रहल हईं , सिद्धार्थ भी बिलकुल उहे- अलगा तरीका से.

सिद्धार्थ क  शीतल स्फटिक तरंग - उच्छ्वास  सारनाथ में अनगिन   तरीका  से प्रकट हो रहल हवे . वृक्ष के  छाया में रमन करे  वाला व्यक्ति स्वयं वृक्ष बन जाला .... पाँव   के   सांकल के  उतार फेंकल  चाहत हवें -- सिद्धार्थ.   व्यवस्था, वर्ण, लिंग, असमानता  : सबकर  सांकल.   एगो  विद्रोही मन. सम्यक चित्त. अइसन  स्वप्नशील व्यक्तित्व, जेम्में नया  दिन  के , नया समाज के , नया  जीवन के रंग हवे .  जहां अत्याचार ना , विभेद ना  , विसंगति ना , शोषण ना ! समाज आ  व्यक्ति क अन्योन्याश्रित सम्बन्ध : स्नेहपूर्ण.

सिद्धार्थ के  सम्बोधि में आकाश क  रंग सिंदूरी हो गइल . उनके अस्फुट उच्चारण से चिरई -चुरमुन  चहक उठलीं . रेशमी हवा भोर ही भोर में सिहर उठल. जइसे बुद्ध के रूप में संसार क पुनर्जन्म भइल. महाकरुणामय ! मदमत्त अभियान में निकलल  संसार के जलहीन, प्रकाशहीन,करुणाहीन, निर्जीव समाजन खातिर एगो  सम्पूर्ण मनुष्य ! सजीव समाधि में महानिद्रित! महाजागृत!! पारम्परिक भारतीय समाज के  श्रेणीबद्धता से मेघाच्छन्न क्षितिज से साफ होत आकाश . भारतीय समाजन  के ऊँच-नीच यंत्रणन  के घन अन्हियार  परिधि से अलग अभिकेंद्रक बनावत  सिद्धार्थ बुद्ध बनले.  ललित विस्तर सूत्र, बुद्ध चरित काव्य लंकावतार सूत्र, अवदान कल्पलता, महावंश  महानिर्वाण सूत्र ,महावग्ग , जातक, कोपान भि-चि-चि , शाकजित  सुरोकु, मललंगर  वत्तु , गच्छका रोल्प  आदि से बुद्ध के बारे में पता चलेला   प्रमुख रचनाकारन-- अमर सिंह , राम चंद्र , विदेह, क्षेमेन्द्र , अश्वघोष आदि  उनकरा उप्पर  काव्य-प्रकाश डरले हवें .

यदि कवनो मनई   आगी  जरवला  के  इच्छा से भीगल  लकड़ी के  पानी में डुबा  रक्खे  आ  फेर  वोही   लकड़ी के  भीगल अरणी से रगड़े त ऊ  ओसे  कब्बो  आगी  ना निकार सकेला. वोही तरे  जेकर  चित्त रागादि से अभिभूत हवे , ऊ  कदापि ज्ञान -ज्योति -लाभ ना  क  सकेला . ईहे  उपमा बोधिसत्व के मन में पहिले -पहिल  उदित भइल . बाद में ऊ सोचलन  कि जे  भीजल लकड़ी के  जमीन प  रखि के  अरणी से ओके रगरेला , ऊहो जउने तरे  अग्नि-उत्पादन कइला  में समर्थ ना होला  , वोही तरे हिरदय रागादि द्वारा अभिषिक्त ह , वोहू के ज्ञान -ज्योति ना  मिलेले. ई  दूसर उपमा भइल . एकरे  बाद उनके मन में ई  उत्पन्न भइल कि जे सुक्खल  लकड़ी के  जमीनी  पर रखि  के सुक्खल  अरणी से रगरेला , ऊ  ओसे अनायासे  आगी  जरा  सकेला  : एही तरे जेकरे  चित्त  से रागादि बिलकुल चल गइल बा  , ऊ  खाली ज्ञानाग्नि लाभ कइला  में समर्थ होला  . ई  तीसर उपमा कहाइल . ऊ  पहिले सुवितर्क , दुसरे सुवितर्क , तिसरे निष्पीतिक  आ चउथे  अदुःखादुःख  धियान  में विहार करे लगलें .

बुद्ध  कहले रहलन -- संयोगोत्पन्न पदार्थ क  क्षय अवश्यम्भावी .. आकाश असीम ह  , ज्ञान अनंत ; संसार अकिंचन , संज्ञा आ  असंज्ञा - दूनों  अलीक हईं   : एही तरे  सोचत  ज्ञाता  आ  ज्ञेय - दूनों क  ध्वंस होखला  से बुद्ध  परिनिर्वाण -लाभ कइलन.

एक बार सिद्धार्थ  छंदक से  कहले रहलन --  हम   रूप , रस, गंध, स्पर्श  आ  शब्द इत्यादि अनेक प्रकार के  काम्य वस्तु क एह  लोक आ  देवलोक में अनंत कल्प ले  भोग कइले हईं  किन्तु हमके  कवनहूँ चीज  से  तृप्ति न मिलल.  

आज पूरे विश्व के आकाश में अविश्वास के तैरत मेघ , सागर से उठि आवत  व्याकुल हवा क  हाहाकार -- अन्हियार  में चारोँ ओर इतिहास क  फुसफुसाहट भरल  बाति - अनुगूँज . सिद्धार्थ यानी बुद्ध प्राणवंत आ  कविता क  लहर . भारतीय समाजन  में जाति आ  वर्गन  के  दीवारन  के व द्रोही भेदक . बुद्ध यानी रंगन  क   समुज्ज्वल समारोह . प्राणियन  के मीत. अहिंसा 
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परिचय दास 
पूर्व सचिव, हिंदी एवं मैथिली- भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार 
ईमेल-parichaydas@redifmail.com
७६ , दिन अपार्टमेंट्स, सेक्टर-४, द्वारका, नई दिल्ली-११००७८ 
मोबाइल-०९९६८२६९२३७ 

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