Friday, 21 February 2020

भोजपुरी क सर्जनात्मकता/ परिचय दास

प्रेम क अनुवाद ना हो सकेला 

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’’हमरा लग रहल बा कि हम कवनो विजन देख रहल बानी अउर तू ओह विजन में ना बाड़ू । बाकिर वोह विजन के देखत-देखत हमरा मन में एगो तन्मय उन्माद उमड़ रहल बा जवन धीरे-धीरे हमरा पूरा देह, पूरी आत्मा में छा रहल जात बा अउर हम एगो एनरजेटिक बदरी से घिर गइल बानी। हमरा भीतर से प्रकाश के प्रभा मण्डल फूट रहल बा। एह दशा में शब्द बिल्कुल बेकार बा, मुद्रा भी बेकार बा। बाकिर तू हमरा वोह तन्मय उन्माद के छू रहल बाडू-काहे से कि उ प्रभा मण्डल तोहरा के स्पर्श करत फइलत जा रहल बा अउर शब्द अउर मुद्रा से हट के एगो संवाद हो रहल बा। जहाँ हम ओह विजन से अभिभूत बानी, हमरा भितरियाँ स्थित तू हमरा उन्माद क देख रहल बाडू, छू रहल बाडू, महसूस कर रहल बाड़ू । तू वोह विजन के भी देख रहल बाड़ू । ऊ उन्माद तोहरा प छावल जाता। धीरे धीरे ऊ विजन अपने आप में महत्वपूर्ण ना रहेला। ऊ सिर्फ दूरस्थ पहाडी के तरह हो जाला जवन कि आपन तरफ आइल गूँज खातिर रिफ्लेक्टर क काम करेला। जवन महत्वपूर्ण बा, ऊ ह तन्मय उन्माद। विजन के सार्थकता ओह तन्मय उन्माद के उत्पन्न करे में बा। ...... अउर एह समय लागऽता कि न हम अन्तर के मथ के उमड़ रहल शब्द से डरतानी अउर न चुपचाप रहल धड़कन से। दूनो एकही चीज हवें अउर दूनो में हमहीं बानीं।’’
-विजय देव नारायण साही

भोजपुरी कबहूँ राजगद्दी के भाषा ना रहल। अजहू ऊ जनते क भाषा बा। पहिलहीं से ऊ संत आ भगत जन के भाषा रहल बा। भोजपुरी भाषा खाली संचरण के साधन ना हवे, अपितु सांस्कृतिक प्रवाहमयता के सेतु हवे। उ हमार अभिव्यक्ति के साथ-साथ हमार सौंदर्य व आवेग के भी आकार देले। हमरा के निर्गुण से सगुण बनावले। भाषा हमार मनुष्यता के जीवित रखेले। सृजनात्मता के विकास में कल्पना के प्रेरित करे के पीछे भाषा के आवेग की भूमिका बीज रूप में रहेला।

जब हम एगो भाषा से दूसर भाषा में अंतरण करीला त ’संभवता’ के बावजूद बहुत कुछ छुट जाला।’ ऊ
कवन अंतराल हवे जवन भाषा के एह अद्वितीयता देला। इ स्पेस कहां से आवेला ?

आपने एगो कविता से उदाहरण:

असंभव अनुवाद
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प्रेम क अनुवाद ना हो सकेला कौनो भाखा में
न लइका के तुतलाहट क
न इतरात फूल के कमनीयता क
झरत पतइन के आख्यान क अनुवाद ना हो सकेला
न घनहर छाँह क
कम्प्यूटर में कंपोज ना हो सकेला अँखियन में झलकत करुना
शब्दन में बयान ना हो सकेला जीवन भर के दुःख
अहैतुक।

भोजपुरी भाषा हमरा के जड़ तक ले जाले। भाषा सामाजिक पक्ष के साथे साथ अंतः पक्ष के भी कलेवर देले। अतीत के समझे खातिर, वर्तमान से जूझत व भविष्य में प्रवेश के पीछे भाषा के महती भूमिका बा। सचमुच में आज भाषा पे विमर्श ’पावर डिस्कोर्स’ के रूप में भी हो रहल बा। आज जहाँ अंग्रेजी दुनिया भर के द्वार खोल रहल बा, वहीं अनेक बार दूसर भाषा ओकर वाणिज्यिक (आर्थिक), दबावकारी हैसियत के नीचे दबल महसूस करेला। अंग्रेजी के एकछत्र शासन के बदले विश्व के अन्य भाषा के विकास के दरवाजा भी बराबरी से खुले के चाहीं। एक जइसन विचारधारा, एक जइसन संस्कृति, एक जइसन भाषा-आदि विचार लोकतांत्रिकता व बहुवचनात्मता के विरुद्ध बा। एह में विकेंद्रीयता होखे के चाहीं। ’विविधता’ मनुष्य जाति के शक्ति हवे। एकरा के ’एक ही तरह’ या ’कठोर एकरूपता’ से ना जकड़े के चाहीं। कवनो भी राष्ट्र के आपन बात आपन भाषा में कहे से जवन आत्मसम्मान मिलेला, उ कहल नइखे जा सकत। एकर अर्थ कट्टरता के सृष्टि ना हवे या दूसर के निषेध नइखे। अन्यतर वैश्विक भाषा अपनावल व ओकरा के सम्मान दीहल भी आवश्यक बा अउर उ हमनीं के करीना जा। 

साहित्य के अलावा मानविकी, विज्ञान तथा दूसर क्षेत्र में भी भारतीय भाषा के प्रयोग होखे के चाही । कवनो देश के स्वाधीनता के असली अर्थ त इहे होला। जब हम कवनो भाषा के प्रयोग करीना त ओहमें हमार इयाद होला, लालित्य होला। भाषा के गतिकी एही बात पर आधृत बा कि ओहमें ’हम’ कहाँ तक ’उपस्थित’ बानी। भारत बहुभाषिक-बहुसांस्कृतिक समाज के प्रतिनिधित्व करेला। ईहे एकर शक्ति ह। इ कुरुप तब बन जाई, जब भषा के कुरुचिपूर्ण दुराग्रह होखे। आधुनिक समय में जवना के हम ’हिन्दी’ कहनीं, उ ’खड़ी बोली’ के परिमार्जित रुप हवे। हमनीं के एह पर विचार करे के होखी कि आधुनिक चाहे समकालीन हिन्दी साहित्य से भोजपुरी चाहे मैथिली (या दूसर) क्रियापदन के समकालीन रचना काहे विरत कर दीहल गइल।

एह पंक्तियन के लेखक भोजपुरी आ हिन्दी खड़ी बोली दूनो में लिखेलन। दूनो के प्रति उनकर मन में आदर बा। भोजपुरी अउर खड़ी बोली दूनो मिलकर साथ चलिहे सन बाकिर भोजपुरी के आपन जगह आ सम्मान अभीष्ट बा। राष्ट्रीयता के नया सिरा से समझल आ दुसरन खातिर ’स्पेस’ तलासलो भाषिक गतिकी के एगो महत्वपूर्ण पहलू हवे। उहाँ बहुवचनात्मकता आवश्यक बा। भाषा के दंभपूर्ण अतिवाद भी व्यर्थ बा। भाषा के पक्ष आत्मा के आवेग के हवे।

जटिल स्वप्न, इच्छा आ छन के एकाग्र हमार भाषा हमें ’स्वत्व’ देले। भाषा हमनी के जीवन देला। भाषा हमनी के स्मृति देवेला। ऊ हमनही के होखले क अभिकेंद्रक (न्यूक्लियस) हवे।

ईहाँ- ऊहाँ के बाति घुमा-फिरा के काहें कहीं !
पेड़- पालो वाले ताल नदी में
उठेलीं : लहर, लहर, लहर
प्रान के भाव-क्षेत्र में
जल के गहनता में
कुछ हिलेला
रउवां मालूम नइखे
एही से हमनी के कौनों संधान
सत्य संधानबा - आत्मा के ’उजास क भाषा’
चहक-चहक चाँदनी निर्मल प्रसन्न
सपना तिर जाला
अँखियाँ के अंत: स्थल में
तोहरा परिचित
दिन-रात
आसमान क वितान-विस्तार
एगो अँगना के कोना में
कौनों पुरान बिरिछ के छाया में बजेले लोकधुन
(- परिचय दास)

दुनिया के कई गो देसन में भोजपुरी बोलल जाला। भारत के अलावा सूरीनाम, नेपाल, फिजी, त्रिनिदाद,माॅरिशस देश में भोजपुरी व्यवहार में बरतल जाला। कबीर, भीखन राम, धरनी दास, टेकमन राम, पवहारी, कीनाराम आदि महत्वपूर्ण भोजपुरी भक्त कवि रहलन। शंकरदेव के भाषो में भोजपुरी के एगो रूप देखल जा सकल जाला। गोरखनाथ के भाषा में भोजपुरी के आदि रूप देखल जा सकेला। उपरांत , तेगअली, बिसराम, दूधनाथ उपाध्याय आदि आवेलन। रघुबीर नारायण, मनोरंजन प्रसाद सिन्हा, चंचरीक एकर मुख्य भूमिका कवि के रुप में अदा कइलन। भिखारी ठाकुर, महेंद्र मिश्र लिखत लिखत लोगवन के कंठहार बन गइलन। गद्य में रविदत शुक्ल, राहुल सांकृत्यायन, रामेश्वर सिंह काश्यप, रामनाथ पांडेय आदि लोग महत्वपूर्ण बाड़न। विवेकीराय, चंद्रभूषण सिन्हा, दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह, सत्यदेव ओझा आदि साहित्यकारन के योगदान स्वीकार कइल जाई। उदयनारायण तिवारी, कृष्णदेव उपाध्याय शोध के माध्यम से भोजपुरी भाषा-साहित्य के ढेर सगरो पहलू प्रस्तुत कइले बाड़न। समकाल में ढेर सारा रचनाकार रचनारत बाड़न। समकालीन लोगन पर लिखल आज आवश्यक आ कुशल सृजनात्मक कार्य ह | वोह लोगन पर फेरु कबहीं अलग से जल्दिये लिखाई | ऊ अपने भाषा में बेहतर रचना सृजित कर रहल बाड़न।

भोजपुरी के वाचिक परंपरा बहुत महत्वपूर्ण बा। एह में सोरठी, बृजभार, सारंगा सदावृज, कुँअर विजयमल, बिहुला आदि लोकगाथा जनजीवन में रचल बसल बा। डाॅ सत्यव्रत सिन्हा के एह पर विशेष शोध कार्य बा। महादेवप्रसाद सिंह ’घनश्याम’ इनकर संकलित संपादित कइले बाड़न। भोजपुरी के मिठास पूरा दूनिया में प्रसिद्ध बा। हर भासा के एगो मिठास होला। भोजपुरी एगो कर्णप्रिय भाषा बा। एह भाषा में बनल फिल्म आपन विश्व बजार रखेला। एह भाषा के फिल्म के मार्केट हिन्दी के टक्कर के बा। ’बिदेसिया’, ’गंगा मइया तोंहे पियरीचढ़इबों’, दंगल आदि फिल्म क्लासिक मानल जाला।

भोजपुरी लोगन द्वारा स्वयं के संबंध के विश्व के साथ देखल जाइल कवनो यांत्रिक प्रक्रिया ना हऽ। जवनआर्थिक ढाँचे के माध्यम से राजनैतिक अउर अन्य संस्था के उदय के साथ व क्रमिक रुप से संस्कृति, मूल्य, चेतना व अस्मिता के साथ सुव्यवस्थित चरण व छलाँग में घटित होखे। संघर्षशील वर्ग राष्ट्र के लिए शिक्षा मुक्ति का एगो उपकरनो बा । ई परस्पर विरोधी संस्कृतियन के बीच आपन विवेकशील विश्वदृष्टि के वाहक बा । पश्चिमी किस्म के सभ्यता, स्थिरता व प्रगति के बिल्कुल ओही रुप में स्वीकार करे के चेष्टा अंततः भोजपुरी मानस क आपन उपनिवेश बना लिही। आपन जड़ के महता के बचा के रखे के चाही। भोजपुरी मे एगो संवेदनशील मनुष्य के समतामूलक समाज के कल्पना बा, लेकिन एकर साहित्य नारा के उद्घोष नइखे । भोजपुरी खातिर साहित्य नारा नइखे । सर्जनशीलता खातिर अंततः संवेदना अउर चेतना हऽ। निवासी व प्रवासी के रुप में भोजपुरी लोगन समूचा विश्व वितान रचले बाड़न। माॅरिशस में आपन खून पसीने से गंगा व ओकर संस्कृति रचले बाड़न। सूरीनाम, नेपाल, गुयाना, त्रिनीदाद, फिजी, दक्षिण अफ्रीका आदि देशन में आपन श्रम से फूल खिलइले बाड़न।

हमनी के जानत बानी जा कि उधार में लीहल भाषा या दूसर के अंधानुकरण से आपन साहित्य व संस्कृति के रचना विकसित करल संभव नइखे। हम भाषाई रुप से कभी कट्टर ना हनीं, काहे कि भोजपुरी जन के ई मानल बा कि भाषा आ साहित्य के बीच सांवादिकता बनल रहे के चाही। आपन वाचिक वलिखित परंपरा के गर्भ से रत्न-उत्खनन खातिर अब त चेष्टाशील होखे के चाही। संस्कृति के विविध क्षेत्रन में पुनर्जागरण के अगाध सृष्टि होखे के चाहीं ।

भाषा के भण्डार विज्ञान, दर्शन, तकनीक व मनुष्य के अउर प्रयास खातिर खोलल जरूरी बा। शब्द-कौतुक एगो कला ह, लेकिन संस्कृति के प्रवाह शब्दन में मात्र अमूर्त सार्वभौमिकता से संभव नइखे। यदि हम वास्तव में चाहत बानी कि हमार बचन व हमार स्वयं के अभिव्यक्ति के लय प्रकट होखे तथा प्रकृति के साथ हमार रचाव के संवर्द्धन होखे त मातृभाषा भोजपुरी में सर्जना पर बल आवश्यक बा। इ कार्य अंधविचार से परिचालित ना होखे के चाही। आपन भाषा व परिवेश के बीच स्थापित सामंजस्य के प्रस्थान विंदु मान के दूसर भाषा सीखल जा सकेला। आपन भाषा, व्यक्तित्व व आपन परिवेश के बारे में कवनो ग्रंथि पाले बिना अन्य साहित्य व संस्कृति के मानवीय, लोकपरक व सकारात्मक तत्व के आनंद उठावल जा सकत बा। भोजपुरी विश्व दूसर साहित्य व भाषा से हमार रिश्ता रचनात्मक होखे के चाहीं न कि दबाव भरल उपनिवेशपरक। अंततः हमार संस्कृति व बिंब के सार्थक आधार अपने भाषा में संभव बा । समकालीनता के बीच स्वस्थ संबंध होखे के चाहीं, जवन कि मूल से ही संभव बा।

भोजपुरी में रचना शाब्दिक बिंब के रूप में आत्म व जनसंघर्ष के रचनात्मक चेतना के न केवल स्वीकृति ह, अपितु संस्कृति के आत्म पहचानो बा। एह से गर्भ तक पहुँच कर रत्न-उत्खनन के संभावना अउर प्रबल होखी। भोजपुरी व साहित्य न केवल भारत अपितु विश्व में भविष्यमुखी दृष्टि रखेला। भोजपुरी के भविष्य आपन सर्जनात्मकता के कारण उज्जवल बा, बस वोम्मे रचत रहे के चाही ।
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लेखक - परिचय दास
लेखक के ईमेल - parichaydass@rediffmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग के ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

Monday, 30 July 2018

माँ से ही आइल फसलन के ... / परिचय दास रचित भोजपुरी कविता

माँ से ही आइल  फसलन  के  हरियरी  हमरा  भित्तर




आमें  के बउरी   से मंहकत भाषा माँ  पहुंचवली  
अन्तःस्थल में हमरा  ..
मातृ भाषा ......
पूर्वाह्न  के  रंग - लग्न 

समा  गइल   पोर-पोर में दूध के  मिठास से 

माँ से ही आइल  फसलन  के  हरियरी  हमरा भित्तर   
राति  में चन्द्रमा के नीम -मीठ उजियार  में  सपना  आइल  
माँ के  गरम  गोद में  सुत्तत  हमरा नियन  शिशु के  
पृथ्वी  से कम बड़ नइखे  माँ क  चुम्बकत्व 
उहां प्यार भरल  अइसन  ओरहन  ह जहां रोमिंग ना  लगे  
जहां प्रत्येक शब्द ह : ऊर्जा, साहस, प्रार्थना 
नया  रस्ता के स्थापत्य के  आँकत आँख 
एगो  अइसन  अभिकेंद्रक जवन  महुवा  के फूल नियन  
परिधि में छितरा जाला  
इयादन  के ऊ पुरान पिटारा  हमरा  आँखिन में हवें  
हमरी  भाषा में हवें   , हमरे   आंसुन में हवें  ऊ  तमाम दिन 
कालहीन चिरंतन मानस के  लभ्य अँगनाई , जहां  हम  खेललीं  -कूदलीं  
श्रद्धा , विस्मय , मुग्धता से आगे जाके  
कवनहूँ    लघुता क  हो जाला  तोहरा  में  बड़प्पन , माँ 
हर वनस्पति हो जाले  सार्थक तोहमें 
ख्याति के अहंकार, विलोपन के त्रास, 
कर्म के जटिल आवरण टूटें बार बार 
हम  चाहीलां  
हम  चाहीलां  अंधियार राति  में , असमय में 
तोहरे  वात्सल्य क मंहकत स्पर्श 
हमके  विकल्प के भविष्यत क नया वासर दे 
एक मानुषी उजियार  से  जवन देहले रहलू  रंगन  के  आवृत्ति तूँ 
हवा के  गंध बनिके  पदचाप नियन  खनखनाले  हमरा भित्तर 
ऊ  तुंहई  हऊ जेसे बतिया के  भोजपुरी नया  अर्थ पावत  रहल 
ऊ  तुंहई  हऊ  करा खातिर  हम  ''रउवां '' इस्तेमाल न कइलीं  
तोहसे स्वस्ति -वचन लिहलीं  हम  
बाकिर  अपन  व्याकरण स्वयं निर्मित कइलीं , जइसन  तूँ चाहत रहलू 
तोंहसे  कहिके  कुछऊ  हम हो जात रहलीं  मुक्त , निर्भय 
खाली  तुंहई   रहलू  जहां  हम  कहि  सकत  रहलीं सब कुछ 
भाषा जहां अपर्याप्त रहल आ हम   निरुत्तर 
अक्षर शब्द वाक्य से  परे तूँ ...
लाख योजन भी तुम दूर चलि  गइल  होखले  भलहीं  
हमरा अंदर हवे  तोहरे  ऊर्ध्वशिखा क  विपुल विश्वास 
सृष्टि क साँस.


गेना के पीयर   मँहक में 
सन्तरा  क  मिठाई जवन  तोहके  पसंद रहल  
हरियर   धान के गंध क  चिउरा  जवन  तोंहके  पसंद रहल  
माटी के कसोरा  में 
भेंटत हईं  एह कविता-रूप में.

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कवि- परिचय दास  

कवि के पता- 76, दिन अपार्टमेंट्स, सेक्टर-4, द्वारका , नई दिल्ली-110078

 मोबाइल-9968269237

Sunday, 29 April 2018

बुद्ध : रंगन क समुज्ज्वल समारोह / परिचय दास

कहल-सुनल-5
बुद्ध- रंगन क समुज्ज्वल समारोह
एशिया  के  बुद्ध कइसे  एक करेलें  ? अहिंसा  आ  मनुष्यता के  जरूरत आज पहिले से अधिका काहें  ह  ??



बुद्ध एगो ऐसा विचार-स्तम्भ हवें एशिया के ''एशिया''  बनावेलन.
लेखक- परिचय दास, पूर्व सचिव, हिंदी एवं 
मैथिली- भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार 
जिनकी वजह से एशिया के  गुरुता बढ़ेला. अकेले बुद्ध अथवा गांधी एशिया के जोड़ सकेलन  भा  विश्व को गुन्हि  सकेलन बलुक गुन्ह लेबाड़न बुद्ध के खाली  धार्मिक व्यक्ति के रूप में देखल एकांगी दृष्टि ह. ऊ सांस्कृतिक आभा हवेंजइसे ई धरती आलोकित होले.

बुद्ध अतिवादिता से परे रहलन . हमनी  के  सामान्य  रूप में   अइसने होखे के चाहीं  . उहाँ  अतिवादिता के  जगह नइखे    . एसे   मध्य मार्ग एगो आवश्यकता ह.  बीना  के तार  एतना कसे  के ना चाहीं  कि टूट जांय भा एतना ढील ना होखें  कि ध्वनिये  न आये. वास्तविक जीवन में भी बहुत कड़ाई हमनी के तोर  देले  आ बहुत ढिलाई  कर्मच्युत  कर  देवेले.

कई बेर  यशोधरा के दुःख से हमनी के  दुखी होखल जाला. सिद्धार्थ के  कवनो  रस्ता अलग किसिम  के  निकारे के चाहत रहे. शायद ऊ  मार्ग अधिक ' सिद्ध अर्थ होत ! परन्तु  जवान भइल  हुआ , ऊ एगो इतिहास हवे आ  इतिहास बदलल  ना  जा सकल जाला . हमनी के  स्वप्न , स्मृति  एगो  अलग इतिहास के  संयोजित करेलन  परन्तु  यथार्थ क पक्ष इतिहास के ढेर भावेला . हमार मानल ई ह  कि यथार्थ क कवनो   एक रूप ना होला आ स्वप्नहीन यथार्थ क कवनो  अर्थ ना . यशोधरा क कसक प्रेम क  कसक ह  , सम्बन्ध क  कसक ह  , स्वप्न क  कसक ह. दुसरी ओर सिद्धार्थ मृत्यु से पार गइला के प्रक्रिया के  समझल चाहत हवें .  का  मृत्यु मनुष्य क  अंत हवे , ई बाति  सिद्धार्थ जानल  चाहत  हवें .   यशोधरा  असमाने में  मनई  के दुःख-दर्द क अंतहीन महाकाव्य रच रहल हईं , सिद्धार्थ भी बिलकुल उहे- अलगा तरीका से.

सिद्धार्थ क  शीतल स्फटिक तरंग - उच्छ्वास  सारनाथ में अनगिन   तरीका  से प्रकट हो रहल हवे . वृक्ष के  छाया में रमन करे  वाला व्यक्ति स्वयं वृक्ष बन जाला .... पाँव   के   सांकल के  उतार फेंकल  चाहत हवें -- सिद्धार्थ.   व्यवस्था, वर्ण, लिंग, असमानता  : सबकर  सांकल.   एगो  विद्रोही मन. सम्यक चित्त. अइसन  स्वप्नशील व्यक्तित्व, जेम्में नया  दिन  के , नया समाज के , नया  जीवन के रंग हवे .  जहां अत्याचार ना , विभेद ना  , विसंगति ना , शोषण ना ! समाज आ  व्यक्ति क अन्योन्याश्रित सम्बन्ध : स्नेहपूर्ण.

सिद्धार्थ के  सम्बोधि में आकाश क  रंग सिंदूरी हो गइल . उनके अस्फुट उच्चारण से चिरई -चुरमुन  चहक उठलीं . रेशमी हवा भोर ही भोर में सिहर उठल. जइसे बुद्ध के रूप में संसार क पुनर्जन्म भइल. महाकरुणामय ! मदमत्त अभियान में निकलल  संसार के जलहीन, प्रकाशहीन,करुणाहीन, निर्जीव समाजन खातिर एगो  सम्पूर्ण मनुष्य ! सजीव समाधि में महानिद्रित! महाजागृत!! पारम्परिक भारतीय समाज के  श्रेणीबद्धता से मेघाच्छन्न क्षितिज से साफ होत आकाश . भारतीय समाजन  के ऊँच-नीच यंत्रणन  के घन अन्हियार  परिधि से अलग अभिकेंद्रक बनावत  सिद्धार्थ बुद्ध बनले.  ललित विस्तर सूत्र, बुद्ध चरित काव्य लंकावतार सूत्र, अवदान कल्पलता, महावंश  महानिर्वाण सूत्र ,महावग्ग , जातक, कोपान भि-चि-चि , शाकजित  सुरोकु, मललंगर  वत्तु , गच्छका रोल्प  आदि से बुद्ध के बारे में पता चलेला   प्रमुख रचनाकारन-- अमर सिंह , राम चंद्र , विदेह, क्षेमेन्द्र , अश्वघोष आदि  उनकरा उप्पर  काव्य-प्रकाश डरले हवें .

यदि कवनो मनई   आगी  जरवला  के  इच्छा से भीगल  लकड़ी के  पानी में डुबा  रक्खे  आ  फेर  वोही   लकड़ी के  भीगल अरणी से रगड़े त ऊ  ओसे  कब्बो  आगी  ना निकार सकेला. वोही तरे  जेकर  चित्त रागादि से अभिभूत हवे , ऊ  कदापि ज्ञान -ज्योति -लाभ ना  क  सकेला . ईहे  उपमा बोधिसत्व के मन में पहिले -पहिल  उदित भइल . बाद में ऊ सोचलन  कि जे  भीजल लकड़ी के  जमीन प  रखि के  अरणी से ओके रगरेला , ऊहो जउने तरे  अग्नि-उत्पादन कइला  में समर्थ ना होला  , वोही तरे हिरदय रागादि द्वारा अभिषिक्त ह , वोहू के ज्ञान -ज्योति ना  मिलेले. ई  दूसर उपमा भइल . एकरे  बाद उनके मन में ई  उत्पन्न भइल कि जे सुक्खल  लकड़ी के  जमीनी  पर रखि  के सुक्खल  अरणी से रगरेला , ऊ  ओसे अनायासे  आगी  जरा  सकेला  : एही तरे जेकरे  चित्त  से रागादि बिलकुल चल गइल बा  , ऊ  खाली ज्ञानाग्नि लाभ कइला  में समर्थ होला  . ई  तीसर उपमा कहाइल . ऊ  पहिले सुवितर्क , दुसरे सुवितर्क , तिसरे निष्पीतिक  आ चउथे  अदुःखादुःख  धियान  में विहार करे लगलें .

बुद्ध  कहले रहलन -- संयोगोत्पन्न पदार्थ क  क्षय अवश्यम्भावी .. आकाश असीम ह  , ज्ञान अनंत ; संसार अकिंचन , संज्ञा आ  असंज्ञा - दूनों  अलीक हईं   : एही तरे  सोचत  ज्ञाता  आ  ज्ञेय - दूनों क  ध्वंस होखला  से बुद्ध  परिनिर्वाण -लाभ कइलन.

एक बार सिद्धार्थ  छंदक से  कहले रहलन --  हम   रूप , रस, गंध, स्पर्श  आ  शब्द इत्यादि अनेक प्रकार के  काम्य वस्तु क एह  लोक आ  देवलोक में अनंत कल्प ले  भोग कइले हईं  किन्तु हमके  कवनहूँ चीज  से  तृप्ति न मिलल.  

आज पूरे विश्व के आकाश में अविश्वास के तैरत मेघ , सागर से उठि आवत  व्याकुल हवा क  हाहाकार -- अन्हियार  में चारोँ ओर इतिहास क  फुसफुसाहट भरल  बाति - अनुगूँज . सिद्धार्थ यानी बुद्ध प्राणवंत आ  कविता क  लहर . भारतीय समाजन  में जाति आ  वर्गन  के  दीवारन  के व द्रोही भेदक . बुद्ध यानी रंगन  क   समुज्ज्वल समारोह . प्राणियन  के मीत. अहिंसा 
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परिचय दास 
पूर्व सचिव, हिंदी एवं मैथिली- भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार 
ईमेल-parichaydas@redifmail.com
७६ , दिन अपार्टमेंट्स, सेक्टर-४, द्वारका, नई दिल्ली-११००७८ 
मोबाइल-०९९६८२६९२३७ 

Friday, 13 October 2017

भोजपुरी समाज के नयकी चुनौती

कहल-सुनल- 4 





साहित्य चुनौती स्वीकार कइला के साथे  एही  प्रक्रिया द्वारा विज्ञानदर्शनतकनीक  आ अन्य अनुशासनन  क दुआर खुलेला  । भोजपुरी समाज के  वर्तमान स्थिति के  देखीं त  पता चलेला  कि खेती-किसानी   के  हालत नीमन नइखे उद्योगन  के  कमी के चलते मजदूरन  क  अपना  इलाका  से बड़हन   पलायन जारी ह. आपाराधिक आ  राजनैतिक हिंसा जारी हईं । भट्ठा आ इस्कूल  खोलल - दुइए  काम   गांवन  में ख़ास  हो गइल बाड़न । व्यावसायिक  फसलन  के  नितांत अभाव ह  आ पारंपरिक खेती से उचित प्राप्ति ना होखला  के कारन  पेट चलावल  मुश्किल ह । गांवन  में य नवछेड़ियन के लग्गे कवनो  काम-काज  ना  होखला  के कारन  अधिकांश के दिशा गलत हो रहल हवे । यह  तरह पूरे अंचल के सम्हने  वर्तमान आ भविष्य के अस्तित्व  क  गहिर  संकट हो गइल बा । सडक़न  क  पुनरुद्धार होखल  कठिन होत जा रहल हवे  आ  बिजुरी    के पर्याप्त ना  होखला  के वजह से औद्योगिक आ  कृषि संस्थानन  पर गहिर आ बाउर असर हो रहल हवे । पानी क  स्रोत लगातार घट रहल ह  आ  नदियन  में यह  कदर प्रदूसन    बढ रहल  ह  कि पवित्र शब्द सिरिफ  अंतस  के  भावना हो के  रहि गइल बा ।


 गांवन  के पारिस्थितिकी तेजी से बदल रहल  हवे । जानवरन  क पालल  दूभर होत जा रहl ह, काहें से कि उनके भरन -पोसन   क खरच  उठावल  सान नइखे  रहि   गइल । चरागाह सिमटत जा रहल  हवे आ  वनन   के  अंधाधुंध कटाई जारी ह, बाग उजडत जा रहल  हवें  । यंत्र  अराम जरूर पहुंचवले  हवें , बाकिर  उनकर  सुविधा प्राप्त कइले  क  आर्थिक कठिनाई मारक बन गइल  हवे । लोगन  के आपसी संबंधन  में जटिलता आवत  जा रहल  हवे , सहजता खत्म हो रहल हवे । गांवन  के  गुटबाजी  आ अपराध के धंधा क फलल -फूलल  यह  कदर बढत गइल  हवें  कि गांवन  के  आत्मा क  संरचने अनपहचानल -जइसन लगे  लगल  हवे । राजनीति क  कार्य देश के सरीर आ मन क  स्वस्थ विकास कइल  रहल , ऊ  अब यह  अंचल खातिर  वोटन  के  सौदागरी में बदलत जा रहल  ह, जेसे  स्वच्छंद ताकत आ  सत्ता पावल  जा सके।


लोकतंत्र में सत्ता पावल  कुछऊ बाउर नइखे , बुराई ओह तरीके में ह, जौना से  ऊ पावल  जाले  । एही कारन  हत्यन  क खूंखार सिलसिला चल रहल हवे । ई  भूलल  ना  जा सकल जाला  कि बंदूकन  क  मानसिकता समाज क नया विधान रच रहल ह। पूर्वी उत्तर प्रदेश  आ बिहार में एके देखल  जा सकल जाला । भोजपुरी अंचल में पहिले  मेहरारू  सादी-बियाह के अवसर पर पांरपरिक गीत गावत रहलीं । अब एक त यह  तरह के रसम खतम होत जा रहल हईं , अगर बचलो  हईं  त फिल्मी गीतन  के रूप में। आनुष्ठानिको  गीत   अब फिल्मी धुनन  में गावल  जालें । ई एगो  एक समकालीन परिवर्तन हवे । सहरन  के अधकचर असर गांवन  के उप्पर  पड रहल  हवें । मुंबई से चलल  फैसन दिल्ली होत  भोजपुरी अंचल में पहुंच जाला । भोजपुरी लोक गायक आ  लोकनर्तकन  के बदले सार्वजनिक रूप से वीडियो फिल्म देखल  नई स्टाइल बन चुकल बा । टी0वी0 पारस्परिक संबंधन  के विस्तार में कटौती कइले बिया ।

भोजपुरी में बने  वाली फिलिम  ज्यादातर पापुलर किसिम  के होलीं सन । लोग अगर भोजपुरी फिलिम देखे लन   त यह खातिर कि ओम्में  अबहियों  उनकर  जीवन आ  धुन कुछ रिफलेक्ट होलीं सन , जवन कि हिंदी फिलमन  में ऊ  अब कम होत जा रहल हवे । यद्यपि भोजपुरी फिल्मन के स्तर पर बिचार के बहुते जरूरत बा. एगो गहन पुनर्विचार से भोजपुरी फिल्मन के भला होखी । आज के  हिंदी फिलिम  हांगकांग, लंदन, वाशिंगटन, न्यूयार्क वगैरह में बनत आ  उच्च वर्ग क प्रतिबिंबन करेली सन । उनकर  अमूमन लच्छ  एन आर आइये  हो गइल बा , जहां म्यूजिक आ सीडी बेंचके  अकूत कमाई हो जा रहल हवे । आजो  भोजपुरी में एक्को   दैनिक अखबार नइखे ।अइसन कवनो   पत्रिका नइखे  जेकर  पहुंच सुदूर अंचल के लोगन  तक होखे ।

भोजपुरी में बात कइल  कम्मे होत  जा रहल  बा ,ऊ  अधिका में  गांवने  ले  सिमट के रहि गइल बा । चार सिच्छित  लोग अगर इकट्ठा  होके  बात करें- चाहे ऊ  गांव की चट्टी पर होखे , चाहे इसकूल में, चाहे कस्बा  के  दूकान चाहे  ऑफिस में-भोजपुरी के बदले हिन्दिये  क प्रयोग हो रहल बा । पढल -लिखल  लोगन  आ संभ्रांत लोगन  के अपन रिसतेदार आ जांय  त का  मजाल कि भोजपुरी में बात करें। सर्वेच्छन  में पावल गइल हवे  कि भोजपुरी के ओइसने  हीनताग्रंथि क  सामना  करे के होला , जइसे  हिंदी के  अंग्रजी से। एही से  भोजपुरी क  नया अन्वेसन  जरूरी ह । गांव के स्थानीय कला --  खटिया-बुनाई, चटाई-बुनाई, भेंड क़े ऊन से कंबल-बुनाई, बांस के  खपच्चियन  क  आर्ट,गांव के  भीत(दीवार) के ऊपर उकेरल  कला क  निरंतर हास हो रहल हवे । कबड्डी, चिकई, खो-खो, फर्री, लंबी कूद, ऊँची कूद, कुसती आदि खेल पुरान जइसे  जमाना के  की चीज हो गइल हईं । क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय ह। कबों भोजपुरी गांव में हाथ क   गेंद (वॉलीबाल) सबसे आकरसक  खेल होत रहे , जिसके बडा  से बडा  टूर्नामेंट आयोजित होत रहलन । गुल्ली-डण्डा सायदे कतहीं  लउके  । मैनेजमेंट के कमी ।  

भोजपुरी अंचल में सिच्छा  में नई चेतना आइल हवे । क्रय-सक्तियो में  बढोत्तरी भइल बा बाकिर इतना ना  कि ओके  अत्यंत उल्लेखनीय मानल  जाय । भोजपुरी समाज एगो स्वाभिमानी आ  समय के अनुकूल आ आगे चले  वाला समाज ह। ओके अन्य जगहिन्  पर प्रताडना सहे के पड़े , ओकरे  विरुद्ध ई  आवस्यक  ह  कि भोजपुरी प्रदेसन  के सासक जीविका के नया  अवसर सृजित करें। भोजपुरी समाज के  हर  आवस्यकता के धियान  में रखत योजना तैयार कइल जाव । उद्योगन  के विकास के बिना समाज क  आधुनिक विकास संभव नइखे । कृषि पर धियान  दिहले  आ ओके  लाभानुकूल बनवला  से मजूर -पलायन काफी रुक सकेला । भोजपुरी अंचल के पर्यटन-स्थल उपेच्छित  पैदल हवें,   कलाएं मर रहल   हईं । इन्हनी  पर एगो  कार्य योजना के अधीन तुरंते विकास क कार्यवाही प्रारंभ करे के चाहीं ।
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ई आलेख के लेखक - परिचय दास 
लेखक के ईमेल - parichaydass@rediffmail.com

Saturday, 16 September 2017

काहें रचीलाँ हम भोजपुरी में / परिचय दास

कहल-सुनल -3


वइसे त , भाषा अभिव्यक्ति क एगो  एक साधन ह बाकिर  ओकर  भूमिका इतिहास आ  संस्कृति के धारन कइलहू  क   ह , एसे  अपन मातृभाषा में साहित्य रचला  के  प्रयोजने  अनन्य ह। चूंकि एम्मे  हमनी के  स्मृति आ  बिम्ब होलें एह नाते  एकर   सौन्दर्य एगो   आत्मीयता  आ  निकटता के  सर्जना करेला । साहित्य-कला हमनी  के अंतः विवेक आ  संवेदन क  आवश्यक फलश्रुति ह । हमनी के  अनुभव कइल जाला  कि समाज क  पतनोन्मुख हिस्सा हमनी के  ' अंतसआ  इयतापर गैर-जरूरी दबाव डालेला  , बाकिर ध्यातव्य हवे  कि साहित्य क अंतःकरन  समाज क उपनिवेश नइखे । बजार के नकारात्मक प्रभाव आ  राजनीतिक दर्शनन  क छाया साहित्य के  आत्म  के  अनुकूलित कइल चाहत हवें , बाकिर साहित्य समय आ दर्शन के अतिक्रांत कइला के  महासंवेदना ह।

जब  हम  भोजपुरी में साहित्य रचीलाँ  त  ध्वनियन , शब्दन  आ  वाक्यांशन  में शब्दक्रमन  के  विशिष्टता आ  उनके  क्रमबद्ध रूप दिहला के  विशिष्ट भंगिमा से पता चलेला   कि भाषा हमरा खातिर केतना  महत्त्वपूर्ण ह। भाव, बिम्ब आ  लय संश्लेषन  के  वाचिक आ  लिखित माध्यम से सम्प्रेषित कइला  में भाषा क हमरे खातिर  अद्वितीयता ह । सम्प्रेषनीयता से संस्कृति क निर्माण होला । हमरा  शिल्प के सर्जन में किसान-शक्ति क रचनात्मकता ह , सथहीं   , परम्परा आ  समकाल के  नूतन सम्भावना से देखला  क प्रत्ययो । किसान के  अपन मातृभाषा बोलला  आ  एगो  बृहत्तर राष्ट्रीय या महाद्वीपीय भूगोल से जुरल  रहला  में कौनों अंतर  ना  देखाई  देला । हमरे शिल्प के उपकरण आज के चराचर के  संदर्भित करेलन । प्राकृत आ  अपभ्रंश क ऐतिहासिक अवस्थिति के  देखत  आज  के  भाषिक-साहित्यिक रूपाकृति में भाषा के विलोपन के  प्रक्रिया के  समझे के होखी । ' जरिन   की ओर लवटला  '   के  बाति  कहीं अलगा  लागू होत होखी । हम  अपन लेखन के  जर  से निकलले    मानीलां । आखिर हमार  साहित्य जरमूल से संपृक्त जन खातिर त ह , उन्हनीये  क  भंगिमो  ओम्मे होखी ।

सबसे पाहिले त  ई कि हम  केकरा खातिर लिखीलां  ?   जेकरा   खातिर हम  लिखीलां   ओकरा खातिर भाषा क चुनाव का  अर्थ रखेला  ? ई  प्रश्न अत्यंत मूल्यवान ह  कि अंग्रेजी , चाहे  अन्य प्रभुत्वकारी भाषा अइसन  का ना अभिव्यक्त क  पावेलीं  जवन  भोजपुरी करेले । वास्तव में अंग्रेजी  क  कथ्य ऊ  होइए ना सकेला जवन भोजपुरी के होखी  ।

भोजपुरी आ अंग्रेजी  क  सांवेदनिक व सामाजिक पृष्ठभूमि अलग-अलग ह । भाषा में वास्तविक जनप्रेषण   यथास्थितिवाद के  चुनौती ह । भोजपुरी भाषा में बोले  वाले इहाँ  नगर-महानगर, हर कहीं हवें , हर तबका के  ।  यानी कि ई  जीवंत भाषा ह आ धरती से जुरल ।  ई  महज शासन आ  किताब के  भाषा नइखे । हम उहे गाइलां  , जवन  जनता गावेले आ  हमार  मन गावेला । हमार  रचना क  विषय-वस्तु आ  बिम्ब आत्म व जन संघर्ष से लिहल गइल हवें । आत्म व जन संघर्ष के बीच एगो  गहिर  सम्बंध ह । सांस्थानिक  आ  जन स्तर पर सांस्कृतिक विनिमय अत्यंत आवश्यक ह ।

कई बेर देखल गइल  ह कि संस्कृति के प्रतिमानन  के  रचना में  पश्चिमी हस्तक्षेप हद से जियादा बढ़ि  गइल हवे । पश्चिम क  मूल्य हमनी के  मूल्य ना हो सकेलन  बाकिर  सौन्दर्य के विभिन्न तंतुअन  द्वारा हमनी के उप्पर  उन्हनी के  आरोपित कइला  के  सूक्ष्म प्रक्रिया जारी ह । हमनी के एह  स्थिती में पहुंचे लागल हईं जा  कि साहित्य, जीवन आ  सामाजिक संघर्षन  के बारे में एगो  खास दृष्टिकोण-जइसन  बनल जात हवे  जवन , हमनी के जरन से ना आवेला । हमनी के  साहित्य के व्याख्या पश्चिमी धुरी पर ठाढ़ होके कइल जाला आ  दुनिया के ओइसने देखवला में लगि जाइल जाला  ।  ई कवनहूँ  तरह उचित नइखे । पश्चिमी सिद्धांत के जानल एगो अलग बाति बा आ साइत ऊ जरूरियो ह ।

होला का , कि जवन  शिक्षा आ  संस्कृति के  पश्चिमी आधार आ अंग्रेजी  के बल पर हमनी के  समझला के कोशिश कइल जाला  , ओम्में अपन जरि  पूरी तरह आत्मसात ना  होले एहसे  जब कब्बों  बड़  सांस्कृतिक आ  सामाजिक परिवर्तन के  आवश्यकता होले  त , ऊ दृष्टिकोण काम क  ना  होला । खाली सिद्धांत के बात अलग बा ।  किसान के अँगोछा  क  संस्कृति अंग्रेजी  में ना लियावल जा सकल जाला , अइसन हमार मानल हवे । राष्ट्र द्वारा बोलल  जाये  वाली भाषन  में उपलब्ध संस्कृति आ  इतिहास क  समृद्ध राष्ट्रीय परम्परा क  प्रयोग क  के  शक्ति पावल  जा सकल जाला । हमनी के  वास्तविक साहित्य तब्बे  विकसित हो सकेला , जब  भारत के किसान समुदाय क  समृद्धि  संस्कृति, भाषा आ इतिहास के  तह  में अपन जरिन  खातिर  प्रवेश करे। इहां किसान समुदाये अइसन हवे , जवन अधिक  अधिक संख्या में ह आ ओकर जाहिर रचनात्मक-सांस्कृतिक महत्त्व हवे । दुर्भाग्य से आज ओकर  आवाज़  बहुते  कम सुनल जा रहल हवे  आ  ऊ आत्महत्या कइला  के  विवश हवे । रचनाकर्म करत समय हमके  अतीत क  समस्त ध्वनि, चीख, प्रेम, संघर्ष के स्वर सुनाई देला आ ई  स्वर  अइसन भाषा में नहीं हो सकेलन  जेकर  वास्तविक जरि भारत के  धरती में न होखे  या  जनसंघर्ष से जुरल ना होखे ।

प्रत्येक मनई  के  संस्कृति के सकारात्मक तत्वन  के  मेराइये के    मानवीय मूल्यन आ   परम्परा क अइसन अधार तइयार  हो सकेला जवन  वैश्विक प्रभाव छोड़ सके । आर्थिक  आ राजनैतिक मुक्ति, वास्तविक मुक्ति क  बुनियादी शर्त हवे  त  वोह  आर्थिक आ  राजनैतिक मुक्ति  क  यात्रा नपला के   पैमाना हमनी के संस्कृति, मूल्य  आ  दृष्टिकोण हवें  ।

 साहित्य क  एगो  गुन  आत्मसंवर्धनो  ह, जेम्मे  आलोचनात्मक मानसिकतो  सम्मलित हवे । हम  भोजपुरी आ  हिन्दी के माध्यम से समग्र परिवेश के  आलोचनात्मक ढंग से आकलन आ  मूल्यांकन क पाइलां । सथहीं  एह प्रक्रिया में उपलब्ध उपकरनन  के  सहायता से दूसर संस्कृतियन आ  पुरहर दुनिया क  आकलन आ मूल्यांकनो । हमनी के  एगो  स्वतंत्र देश में रहल जाला ।  कवनहूँ   स्वतंत्र देश के  अपन संस्कृति के अध्ययन से जुरल  अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय क  काम दुसरा  देशन  के बदले स्वयं करे के चाहीं । राष्ट्रीय संस्कृति के  पश्चिमी-अभिमुखी निर्णयन  के  गुलाम बनावल   देश के लोगन  के प्रति विश्वासघात ह । ओम्मे हमनी के  संघर्ष क  सौन्दर्यबोध ना होखी  आ  मनुष्य क  रचनात्मकता के  शक्ति क  निरादरो । इतिहास के हमनी के  अनुभवन के  अभिव्यक्ति हमनी के  अपन  साहित्य में इहाँ  के  माटी के  सुगंधे   से  सम्भव ह ।


हमरा  मन के  रचना में विविध भाषा-साहित्य  क  संघनन ह । ओम्मे  अपन धरती ह । भाषा क  सहजता हमरा में  सम्पोषित होले ना कि  कट्टरता ।  कट्टरता  हिंसाचारी आ लोकविरुद्ध होले । हमार  साहित्य संवादधर्मी आ  प्रीतिकर्मी ह । मातृभाषा में संस्कृति के  सर्जनात्मकता क  सहजता सम्भव हवे ।

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लेखक- परिचय दास 

लेखक का ईमेल - parichaydass@rediffmail.com

Sunday, 10 September 2017

भोजपुरी के आत्म रचाव / परिचय दास

कहल-सुनल-2

 हम बरिस बरिस से भोजपुरी में लिख रहल बानीं. एगो सर्जनात्मक कवि
के रुप में एह भाषा के आत्मीयता के अनुभूति हमरा बा. हम जानीलें कि रचनाशीलता के समग्र आयाम अपना स्मृति बिंब के मातृभाषा में जेतना सम्भव बा, ओतना अन्य में ना. भोजपुरी हमरा अस्तित्व के संपूर्णता में संभव बनावेले. अंग्रेजी के दबाव के बीच एशियाई मन अपना अभिव्यक्ति के सहज मार्ग के सृजन में सन्नद्ध हऽ. वास्तव में भाषा के चुनाव अपना खातिर एगो दुनिया के चुनाव करे जइसन हऽ. ई योंही ना कि किसानन के आत्महत्या पर चार साल पहिलहीं हम अपना कविता के माध्यम से सब लोगन ले पहिले आपन मंतव्य प्रकट कइलीं. हमार कन्सर्न ओह पाठक या श्रोता से हऽ जहाँ हमार जड़ हवे. शायद संवेदना के तंत्री व सोझ संबंध भाषा के स्रोतस्विनी से हऽ. जब गरीब बदहाली से लड़ रहल होखें आ हमनी के सरजनात्मक विवेक व सक्रियता से विमुख हो जाईल जाँ तऽ हमनी के समूचे अध्ययन, विज्ञान व साहित्य के कवनो अर्थवत्ता नइखे. अपना अपना माध्यम से हम संवेदन के जागृत कर सकीलाँ. मनुष्यता के पक्ष में एतना कइल गइल अति आवश्यक बा. हमार शुरू से मत रहल हऽ कि साहित्य कें अंतःकरण समाज के उपनिवेश नइखे, ओकर संपूरक हऽ. साहित्य वोह तरह के प्रतिक्रिया ना देला, जइसन अन्य अनुशासन देलें. एही से साहित्य समय के अतिक्रांत कइला के क्षमता रखेला.


भोजपुरी के माध्यम से दोसरन के संदर्भ में हम स्वयं के तथा विश्व के संदर्भ में दुसरन के देवता के शक्ति विकसित करीलाँ. आज साम्राज्यवाद अपना पुरान रुप में ना, बल्कि बाजार के पतनशील शक्तियन के रूप में हऽ. यदि हम व्यक्ति व सामूहिक आकाई के रूप में देखीं तऽ समझे के पड़ी कि साम्राज्यवाद कौना भाषायी शकलमें आवेला आ हमार आत्मसंघर्ष कवन आयाम ग्रहण करेला. अपना आर्थिक व राजनैतिक जीवन की प्रक्रिया में कौनो समुदाय एक जीवन शैली विकसित करेला, जवन उप्पर से देखला वोह समुदाय के विलक्षणता से युक्त होला. समुदाय के लोग आपन भाषं, आपन गीत, नृत्य, साहित्य, धर्म, थियेटर, कला, स्थापत्य आ एक अइसन शिक्षा प्रणाली विकसित करेलें, जवन एगो नया सास्कृतिक जीवन के जनम देला. संस्कृति सौन्दर्यपरक मूल्यन के अवधारणा के वाहक होले.

भोजपुरिहा मनइन द्वारा खुद के संबंध के विश्व के साथे देखल जाइल कवनों यांत्रिक प्रक्रिया नइखे, जवन आर्थिक ढाँचा के माध्यम से राजनैतिक तथा अन्य संस्था के उदय के साथे व क्रमिक रूप से संस्कृति, मूल्य, चेतना आ अस्मिता के उदय के साथ सुव्यवस्थित चरण आ छलाँग में घटित होखे. संघर्षशील वर्ग आ राष्ट्र खातिर शिक्षा मुक्ति के उपकरणो हऽ. ई परस्पर विरोधी संस्कृतियन के बीच अपना विवेकशील विश्वदृष्टि के वाहकऽ. पश्चिमी किसिम के सभ्यता, स्थिरता आ प्रगति के बिल्कुल वोही रुप में स्वीकार कइला के चेष्टा अंततः भोजपुरी मानस के आपन उपनिवेश बना लेई. अपना जड़ के महत्ता बचा के राखे के चाहीं.
ई हम बिल्कुल ना कहि सकीलाँ कि हमार भोजपुरी कविता खाली कवियन खातिर बा. ई सही हऽ कि हम एगो कवि के रूप में जी लाँ, बाकिर सिरिफ कवि के रुपे में ना. हमरा मन में एक संवेदनशील मनुष्य के समता मूलक समाज के कल्पना हऽ, किन्तु हमार साहित्य नारा नइखे. सर्जनशीलता कऽ हेतु अंततः संवेदना व चेतना हऽ. निवासी व प्रवासी के रुप में भोजपुरी लोग समूचा विश्ववितान रचले बाड़न. मारिशस में अपना खून पसीना से गंगा व ओकर संस्कृति रचले बाड़न. सूरीनाम, नेपाल, गुयाना, त्रिनिडाड, फिजी, दक्षिणी अफ्रीका इत्यादि देशन में अपना श्रम से पुष्प खिलवले बाड़न.

हम सभे जानी लाँ कि उधार लीहल भाषा आ दुसरन के अंधानुकरण से अपना साहित्य आ संस्कृति रचल विकसित कइल संभव नइखे. हम भाषाइ रुप से कब्बो कट्टर नइखीं जा. काहे  से कि हमनी के मानल ई हऽ कि भाषा आ साहित्य के बीच सांवादिकता बनल रहे के चाहीं. अपन वाचिक आ लिखित परंपरा के गर्भ से रत्न उत्खनन खातिर अब तऽ चेष्टाशील होइये जाये के चाहीं. संस्कृति के विविध क्षेत्रन में पुनर्जागरन के अगाध सृष्टि होखे के चाहीं. भाषा के भण्डार विज्ञान, दर्शन, तकनीक व मनुष्य के अन्य प्रयासन खातिर खोलल आवश्यक हऽ. शब्द कौतुक एक कला हऽ, किन्तु संस्कृति के प्रवाह शब्दन में मात्र अमूर्त सार्वभौमिकता से संभव नइखे. यदि हमनी के वास्तव में चाहऽतानीं जा कि हमनि के शिशू व हमनी के स्वयं के अभिव्यक्ति के लय प्रकट होखे तथा प्रकृति के साथ हमनी के रचाव के संवर्द्धन होखे तऽ मातृभाषा के सर्जना पर बल आवश्यक हऽ. ई कार्य अंधविचार से परिचालित ना होखे के चाहीं. अपना भाषा आ परिवेश के बीच स्थापित सामंजस्य के प्रस्थान बिंदु मान के दूसरो भाषा सीखल जा सकल जालीं. अपन भाषा, वय्क्तित्व आ अपना परिवेश के बारे में कौनो ग्रन्थि पलले बिना अन्य साहित्य व संस्कृति के मानवीय, लोकपरक व सकारात्मक तत्व के आनंनद उठावल जा सकल जाला. अपना व विश्व के दुसरा साहित्य भाषा से हमनी के रिश्ता रचनात्मक होखे न कि दबाव भरल या उपनिवेश परक. अंततः हमनी के अपन स्मृति व बिंब के सार्थक आधार अपने भाषा में संभव हऽ. समकालीन चिंतन व भंगिमा के अपना माध्यम से जेतना प्रकट कइल जा सकल जाला, अन्य से ना. एही से ई समकाल के भी उचरला के विशिष्ट पथ हऽ. वईसहूँ, परम्परा आ समकालीनता के बीच स्वस्थ संबंध होखे के चाहीं, जवन मूल से ही संभव हऽ.

भोजपुरी  न केवल शब्दिक बिंब के रूप में आत्म व जनसंघर्ष के रचनात्मक चेतना के स्वीकृति हऽ, अपितु संस्कृति   के आत्म पहचान भी. एसे गर्भ ले चहुँपि के रत्न के उत्खनन के संभावना अउरी प्रबल होखी.

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- परिचय दास
9968269237  

Saturday, 9 September 2017

भोजपुरी : स्मृति आ समकाल क मैजिक / लेखक - परिचय दास

 कहल-सुनल -1

भोजपुरी व्यवहार में बरते जाए वाली, बोले जाए वाली आ लिखित भासा दूनों ह । एगो बड़हन भू-भाग में ऊ बोलल जाले । यद्यपि आज ऊ देवनागरी में लिखल जाले बाकिर कब्बों एकरे खातिर कैथीलिपियो उपयोग में लीहल जात रहे । एकर भासाई आ क्रियापद क अन्विति में गहिर परंपरा के सन्निवेस हवे । ई खाली लोकके श्रेनी में डाल के छुट्टी पा लिहल जाए वाली भासा नइखे । भोजपुरी मात्र भोजपुरी फिल्मन आ कुछ सांगीतिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमन ले सीमित नइखे । भोजपुरी साहित्य के अभिकेन्द्रक ले सामान्य आदमी के कई बेर ना पहुंच ना हो पावेला , यद्यपि ओकर आधार सामान्य मनई हवे... ।

भोजपुरी साहित्य के असली रूप अब जनसमाज के समने कायदे से 'आधुनिक आ समकालीन रूप ' में आवे के चाहीं । वइसे अबहूँ कुछ हद तक आ रहल बा । एके दूसर भासा में कहल जाय त अब हमनी के अइसन पाठक- समाज विकसित करे के ह जवन भोजपुरी साहित्य प्राथमिकता से पढ़े। हमनी के वोह तरह के समाज बनावे के चाहीं , जेम्मे भोजपुरी में लिखे वाला आलोचक, निबंधकार, कवि आ पत्रकार हमनी खातिर क्रेज के विसय होखे । हमनी के समाज के वैचारिक नेतृत्व करे वाले खातिर स्पृहा होखे। जे लोग सामाजिक चाहे राजनैतिक छेत्र में सक्रिय ह , उनके कुछ इतर कारनन आ सक्रियता के कारन लोग जानेलें । ई एगो अलगे समाजसास्त्र ह जवन लोग हमनी के सांस्कृतिक (साहित्य, कला, संगीत, थियेटर, नृत्य इत्यादि) नेतृत्व करेलन , विशेष तौर पर साहित्यिक नेतृत्व, उनके प्रति हमनी के तात्कालिक उदासीनता बहुत विकट रूप में लउकेले । वृहत्तर अर्थ में ई एक तरह के सांस्कृतिक विपथन ह । हमनी के कइसन समाज बना रहल हईं जा जेम्में कंपनियन से पैकेज, सोफा, एलईडी, कार, बंगला हमनी के समकालीनता में शामिल ह बाकिर साहित्य नइखे । का हमनी के अइसन भोजपुरी समाज ना बना सकीले जहां शहरी, अर्धसहरी या ग्रामीण मेहरारू -मरद बजार जांय , कवनों समान खरीदें त उनके सोच में एगो भोजपुरी के किताब या पत्रिको खरीदल सामिल होखे ?

अबहिन जवना कवि- व्यक्तित्व के बारे में ठीक से धियान भोजपुरी समाज के ना गइल ह , ऊ हवें - बिसराम । ऊ जब बिरहा सुनावत रहलें त फुटकर प्रसंग में एगो भिन्न प्रकृति के कविता बोलत रहे । भिखारी ठाकुर के समानांतर या उनके कालांतर के साहित्य पर अबहिन हमनी के केन्द्रीय दृष्टि ठीक से गइल ना लगत हवे , अइसन कुछ लोग के मत बा । भिखारी ठाकुर के साथे -साथे अपने अवरहूँ समकालीन साहित्यधर्मी आ साहित्य सिलपियन के पारदरसी अन्वेसन आवस्यक ह । कवनहूँ संस्कृतिशील समाज के उद्बुद्ध होखला के लच्छन इहे ह कि ओकर संवेदनसीलता के केतना लय ह । साहित्य वोही संवेदनमयता के विलच्छन लय ह । समाज खाली समाज के फोटोकॉपी नइखे । कॉपी कहि के हम ओकरा के अवमूल्यित ना करब । ओम्में अंतकरन के विसादो -संवादो हवें ।

भोजपुरी में लोक ह त अत्याधुनिकतो हवे । लोकसंस्कृति से प्रेरित होखल या परंपरा से दम प्राप्त कइल एगो स्वस्थ प्रकृति क निदरसन ह बाकिर ओसे आगे बढ़िके अपन समय व समाज पर दीठ गइल हमनी के अग्रगामी बनाई । सामाजिक चेतना के बगैर हमनी कई गो फूहर संवाद या स्तरहीन हास्य अथवा देह के अनर्थक प्रस्तुति से मुकाबला ना क पावल जाई । ई बात याद रखे के चाहीं कि राजनीति से अधिक दूर ले साहित्य जाला , यद्यपि दूनों में द्वंद्व देखल आजु के टाइम में नासमझी होखी । बस कहे के ई बा कि साहित्य, समाज, कला के राजनीति के उपनिवेस मानल गलत हवे । कई बेर राजनीति तात्कालिकता से पार ना पावे त साहित्य सदी- सताब्दी- अनंतकाल खातिर अंतरदीठ देला ।

एही से भोजपुरी साहित्य आ सिल्प पर ठीक से धियान जाए खातिर एगो वातावरन के निर्मिति आवश्यक हवे । अइसन माहौल बने कि जनसमाज आलोड़ित हो उठे कि बगैर अपन लिखित साहित्य के समझले , पढ़ले या अवगाहित कइले हमनी के एगो निस्चित तरह के बिंबधर्मिता, गहराई आ थाती से वंचित रहि जाइल जाई । भोजपुरियो समाज कृषि समाज से औद्योगिक व जटिल समाज की ओर बढ़ चुकल बा । हमनी के अपन सांस्कृतिक संरच्छन खातिर अब वोही तरह के उपकरन चुने के होखी । भोजपुरी समाज के पास अथाह, अगाध आ स्मृति-परकता ह । हर संस्कृति में स्मृति समय क एगो मापदंड हवे । स्मृति ना त सच पूछीं त समय ना । भोजपुरी साहित्य आत्मा के जीवित प्रतिरूप ह ।

सर्जनात्मक भोजपुरी साहित्य धरती आ आकास के दुर्लभ मेल हवे , जेम्में परिचित बंधुत्व के संस्पर्स हवे , गोधूलि के रंग हवे । ओम्में मूल के तलाश हवे आ केन्द्र -बिंदु के खोज। ओम्में जटिलता, वेदना, आधुनिक कला आ अंतर्मन के आधार-वक्तव्य हवे । भोजपुरी राज्यसे अधिक समाज पोसित ' हवे । ओम्में कण्ठ- स्वर से ले के नएपन के प्रक्रिया के अनेक रूप हवें । असली महत्व हवे - समाज में भोजपुरी के साहित्य-आलोड़न आ भासिक परिमार्जन। डॉक्टर सीताकांत महापात्र के सब्दन में-- साहित्य मंच के भासा हवे , मैजिक के भासा हवे । ई भावाभिव्यक्ति के नूतन मोड़ हवे , अपरिचित महादेस में नयका मील के पत्थर हवे । 
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लेखक के परिचय: 

डॉक्टर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव  '' परिचय दास ''

जन्म- 1 मार्च, 1964  , ग्राम- रामपुर काँधी , पोस्ट- देवलास , ज़िला- मऊ , उत्तर प्रदेश .

सांस्कृतिक कविता , भारतीय आलोचना आ  ललित निबंध में नए विन्यास क प्रयत्न .भोजपुरी कविता में एगो  नए शिल्प -पथ क सृजन .  30 से अधिक पुस्तक.    लेखन '' परिचय दास '' नाँव  से.    परिचय दास के परिचय   '' विकिपीडिया ''  प्रकासित कइले बा.  कृपया देखल जाव -- WIKIPEDIA PARICHAY DAS.

भोजपुरी , मैथिली , हिन्दी में लेखन .  गोरखपुर विश्व विद्यालय से साहित्य के समाजशास्त्र में डॉक्टरेट . सार्क साहित्य सम्मेलन , नई दिल्ली में कविता-पाठ के अतिरिक्त भारत की ओर से नेपाल सरकार के नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान , काठमांडू में भोजपुरी पर व्याख्यान.परिचय दास क रचना कई विश्वविद्यालय के एम. ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित.

भोजपुरी-मैथिली पत्रिका - 'परिछन' के संस्थापक-संपादक एवं हिन्दी पत्रिका - 'इंद्रप्रस्थ भारती' के संपादक रहले .

भोजपुरी-हिन्दी में प्रकाशित द्विभाषी प्रमुख प्रकाशित प्रमुख पुस्तक - 'संसद भवन की छत पर खड़ा हो के ', 'एक नया विन्यास', 'युगपत समीकरण में', 'पृथ्वी से रस ले के ', 'चारुता', 'आकांक्षा से अधिक सत्वर', 'धूसर कविता';, 'कविता चतुर्थी', 'अनुपस्थित दिनांक', 'मद्धिम आंच में', 'मनुष्यता की भाषा का मर्म ' [सीताकांत महापात्र की रचनात्मकता पर संपादित पुस्तक ] , 'स्वप्न, संपर्क, स्मृति' [ सीताकांत महापात्र पर संपादित दूसरी पुस्तक ],
''भिखारी ठाकुर '' [ भोजपुरी में संपादित पुस्तक ] , भारत की पारम्परिक नाट्य शैलियाँ [ दू  खण्ड में ] , 'भारत के पर्व [ दू  खण्ड में ].

 '' परिचय दास '' भारतीय कविता आ ललित निबंध  में एगो  महत्त्वपूर्न नांव  हवे .

ऊ  हिन्दी अकादेमी ,दिल्ली सरकार के   सर्वोच्च अधिकारी तथा विभागाध्यक्ष रहि  चुकल  हवें .   साथे , मैथिली-भोजपुरी अकादेमी,   दिल्ली  सरकार  के  सर्वोच्च अधिकारी एवं विभागाध्यक्ष रहि  चुकल हवें 

 सुभारती विश्वविद्यालय,मेरठ  में  शोध-निर्देशक [ पी एच. डी  गाइड ] हवें  .   उहाँ  हिन्दी एवं भारतीय संस्कृति के  मानद प्रोफेसर   हवें .राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ , तिरुपति [ डीम्ड यूनिवर्सिटी ] के विजिटिंग प्रोफ़ेसर आ  मेंबर, बोर्ड आव स्टडीज़  -हिन्दी  हवें

 उनकर 30 से अधिक लिखित एवं संपादित पुस्तकें हईं . साहित्य,कला,अनुवाद,लोक संदर्भ, सांस्कृतिक चिंतन, भारतीय साहित्य,साहित्य के  समाज शास्त्र इत्यादि पर कार्य हवे . कविता ,ललित निबंध,आलोचना इत्यादि में  हस्तक्षेप  हवे .

साहित्य संस्कृति के लिए  7 सम्मान मिल चुकल हवे जेम्मे   द्विवागीश सम्मान, श्याम नारायण पांडेय सम्मान, भोजपुरी कीर्ति सम्मान,एडिटर्स चाय्स सम्मान, रोटरी क्लब साहित्य सम्मान इत्यादि महत्त्वपूर्न  हवें .

परिचय दास  के   जीवनी  आ  साहित्य जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय,छपरा [बिहार]  आ  वीर कुवर सिंह विश्वविद्यालय ,आरा [बिहार ] के एम. ए.  में  चतुर्थ सेमेस्टर [ फाइनल ईयर ] में पढ़ावल जालीं .
साथे  उन कर  कविता  राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति    [ डीम्ड यूनिवर्सिटी ] के एम .ए . [ हिन्दी ] के पाठ्यक्रम में पढ़ावल  जाले.
 ऊ कई गो  विश्वविद्यालयन  के एम. ए. [हिन्दी ] क पाठ्यक्रम बना  चुकल हवें . वोह  समितियो  क सदस्य हवें    , जवन एम. ए. हिन्दी क पाठ्यक्रम बनावेले.

ऊ    नेपाल  में आयोजित साहित्य अकादेमी की ओर से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन [2012 ,फ़रवरी ]  के  सदस्य रहि चुकल बाड़ें    , जेम्में  ऊ    व्याख्यान  दिहले रहलें . वोह  सम्मेलन  में  मैथिली,भोजपुरी ,लिंबू, थारू, नेपाली आ  हिन्दी भाषा पर चर्चा भइल रहे. .

ऊ  संस्कृत,हिन्दी,अंग्रेज़ी,भोजपुरी,मैथिली आदि भाषा में  गति  रखेलें . ऊ  हिन्दी क प्रतिष्ठित पत्रिका -'इंद्रप्रस्थ भारतीक संपादन कर चुकल हवें .  मैथिली-भोजपुरी की प्रतिष्ठित पत्रिका '' परिछन' के संस्थापक संपादक रहि चुकल हवें. ''परिछन '' कुंवर सिह विश्वविद्यालय आरा,बिहार आ जयप्रकाश यूनिवर्सिटी,छपरा, बिहार के एम. ए. [ भोजपुरी ] के पाठ्यक्रम में पढ़ावल जाले .

दिल्ली में आयोजित सार्क सम्मेलन  में   ऊ   कविता -पाठ कइले रहलें. [2011].

हिन्दी अकादेमी,दिल्ली  आ  मैथिली-भोजपुरी अकादेमी,दिल्ली के सचिव रहत ऊ  300 से अधिक साहित्यिक -सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित  कइलें . .भारतीय कविता के 3 अखिल भारतीय आयोजन कइलें , जेम्में  25 भाषा के साहित्यकार अइलें.
लालक़िला  [ दिल्ली ] पर 2 बेर  कवि-सम्मेलन आ  फ़ीरोज़शाह कोटला मैदान [ दिल्ली ]  में 1  बेर कवि-सम्मेलन आयोजित कइलें  ,जवन अखिल भारतीय रहल.. एकरे  अलावा आलोचना, निबंध,कथा,अनुवाद आदियो के  आयोजन कइलें  , जवन अपन गंभीरता आ  संसर्ग खातिर जानल जालें.
   
 डॉक्टर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव  '' परिचय दास ''
७६ , दिन अपार्टमेंट्स, सेक्टर-४, द्वारका, नई दिल्ली-११००७८
मोबाइल-०९९६८२६९२३७  /  ई .मेल-   parichaydass@rediffmail.com












भोजपुरी क सर्जनात्मकता/ परिचय दास

प्रेम क अनुवाद ना हो सकेला  (मुख्य पेज जाईं-  https://bejodindia.blogspot.com /   हर 12 घंटा पर  देखीं -  FB+  Bejod ) ...